‘आत्मवाद, कर्मवाद और पुरुषार्थवाद पर आधारित है जैन धर्म’: मुनिश्री सुधाकर जी महाराज बोले- हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है


बीडी शर्मा, दमोह। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में चातुर्मास करने के बाद श्वेतांबर जैन मुनि आचार्य श्री महाश्रमण मुनि के शिष्य मुनि श्री सुधाकर जी महराज, मुनि नरेश कुमार जी ग्वालियर की ओर विहार कर रहे हैं। मुनिश्री सुधाकर जी महाराज आज पद विहार कर दमोह जिले के बटियागढ़ ब्लॉक के मोठा गांव पहुंचे। जहां प्रवचन में उन्होंने बताया कि ‘जैन धर्म आत्मवाद, कर्मवाद और पुरुषार्थवाद पर आधारित है। हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है।’

हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है

मुनिश्री ने आगे कहा, “जैन मुनि की पदयात्रा उनके जीवन का अभिन्न अंग होती है। जैन धर्म आत्मवाद, कर्मवाद और पुरुषार्थवाद पर आधारित है। जैन धर्म का यह मानना है कि हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है। अपने उत्थान में पतन का जिम्मेदार भी वह स्वयं होता है। वह जैसे कर्म करता है, वैसा उसे फल मिलता है। मगर जैन दर्शन यह मानता है कि हमने कर्म तो जाने में अनजाने में, राग में द्वेष में मोह-माया में, अगर किसी भी प्रकार के कर्म जिस किसी जन्म में किए हों। 

पुरुषार्थ चेतना को जगा ले तो भाग्य की तस्वीर बदल सकता 

मुनिश्री ने आगे कहा, आस्तिक विचारधारा के नाते हम पूर्व जन्म में भी विश्वास करते हैं और पुनर्जन्म में भी विश्वास करते हैं। आत्मा का त्रिकालिक अस्तित्व होता है। आत्मा थी, आत्मा है और आत्मा रहेगी। आत्मा और कर्म का संबंध बड़ा गहरा होता है। मगर हम पुरषार्थवाद के द्वारा अपने कर्मो में परिवर्तन करके अपने आत्मा का उन्नयन व उत्थान कर सकते हैं। जैन दर्शन के अनुसार हर व्यक्ति करता भी स्वयं है और भोगता भी स्वयं है। अगर वह अपने पुरुषार्थ चेतना को जगा ले तो अपने भाग्य की तस्वीर को भी बदल सकता है। 

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