7 फेरे नहीं होने पर क्या हिन्दू विवाह नहीं माना जाता, पढ़िए महत्वपूर्ण निर्णय
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के अनुसार विवाह एक संस्कार है। वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर एक दूसरे को जीवनसाथी स्वीकार करते हैं। अगर कोई हिन्दू महिला या पुरुष यह कहे की मैंने किसी संस्था से, सिर्फ नोटरी या आर्य समाज आदि के द्वारा शादी की है, तो यह विवाह कानून की नजरों में अवैध विवाह होगा जानिए इससे संबंधित एक महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट।
उर्मिला बनाम उत्तरप्रदेश राज्य मामला (निर्णय वर्ष 1994)
आरोपी ब्रजमोहन ने दूसरा विवाह निशा देवी से किया था, जबकि उसकी पहली पत्नी उर्मिला जिवित थी। आरोपी का पहला विवाह आर्य समाज पद्धति से हुआ था, जबकि वह दोनों पति पत्नी हिन्दू धर्म के थे। आर्य समाज पद्धति में विवाह की वैधता के लिए केवल साढे तीन परिक्रमा (फेरे) ही पर्याप्त माने जाते हैं एवं सात फेरों की आवश्यकता नहीं होती है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विनिश्चित किया कि हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार विवाह की वैधता के लिए सात फेरों का होना अति-आवश्यक है। अगर हिन्दू वर वधू है तो उनका विवाह, हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के नियमो के अनुसार ही पूर्ण होना चाहिए, न कि किसी अन्य समाज के नियमों के अनुसार। आरोपी का आर्य समाज पद्धति से किया गया विवाह वैध नहीं है। इसलिए आरोपी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 494 के अंतर्गत पुनः विवाह के अपराध का दोषी नहीं होगा।
हिन्दू पुरुष के साथ बिना शादी के रहने वाली महिला पति होने का दावा नहीं कर सकती है जानिए महत्वपूर्ण जजमेंट सुप्रीम कोर्ट:-
भाऊराव शंकर लोखंडे बनाम महाराष्ट्र राज्य:- उक्त मामले मे उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि अगर किसी पुरुष ने किसी महिला को बिना रीति रिवाज के विवाह करके पत्नी बनाकर रखेल या गवर्नेस के रूप मे रखा है वह स्त्री पत्नी होने का दावा नहीं कर सकती है ऐसे में पुरुष दूसरा विवाह कर सकता है।
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