लंगड़ाता सिस्टम, लापरवाह बने अधिकारी! ग्वालियर में दिव्यांगों के इंतजार में खुद बेकार हो रही ट्राई साइकिल, दर-दर भटक रहे जरूरतमंद  


कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के चलते सरकार की योजनाओं का दिव्यांगों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। जी हां ग्वालियर में अफसरों की लापरवाही से सरकार की योजनाओं को पलीता लग रहा है। दिव्यांगों को बंटने के लिए आई लाखों रुपए की ट्रायसिकल खराब हो रही है।  

अफसरों की लापरवाही से ये ट्रायसिकल बंट नहीं पाई

समाजिक न्याय विभाग द्वारा जरूरतमंद हितग्राही दिव्यांगों को बांटने के लिए लाखों रुपए कीमत की ट्रायसिकल ग्वालियर भेजी गई थी। लेकिन अफसरों की लापरवाही से ये ट्रायसिकल बंट नही पाई, उससे बड़ी लापरवाही ये कि इन ट्रायसिकल को  हुरावली स्थित दृष्टि- श्रवण बाधित आवासीय विद्यालय परिसर में खुले आसमान के नीचे रख दिया गया है। जहां बीती नवम्बर 2024 से रखी ये ट्रायसिकल पहले गर्मी और फिर बारिश के पानी लगने से कंडम हो रही है। असुरक्षित होने से इन ट्रायसिकल के पार्ट्स चोरी हो रहे हैं, दृष्टि- श्रवण बाधित आवासीय विद्यालय में रहने वाले नेत्रहीन छात्रों का कहना है कि बीते छह महीने से ट्रायसिकल कंडम हो रही है, लेकिन पैरों से दिव्यांग लोगों को इनका वितरण नहीं किया गया। 

अनूप जौहरी ने ट्रायसिकलो के फर्जीवाड़े का किया खुलासा 

दिव्यांगों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनूप जौहरी ने ट्रायसिकलो के फर्जीवाड़े का यह खुलासा किया। दरअसल दृष्टि- श्रवण बाधित आवासीय विद्यालय में रखी इन ट्रायसिकल को सामाजिक न्याय विभाग की योजना के तहत बांटा जाना था। बीते छह महीने से ग्वालियर में दिव्यांग कैम्प नही लगाया गया। पिछली बार चिनोर गांव में कैम्प लगाया गया,जो शहर के काफी दूर था,ऐसे में वहाँ हितग्राही दिव्यांग नही पहुंच पाए और ट्रायसाइकिल से बंचित हो गए थे। वहीं अब इनको खुले आसमान के नीचे रखने से ये कंडम हो गई हैं। यही वजह है कि फर्जीवाड़े को उजागर करने वाले अनूप जौहरी इसकी शिकायत CM तक करने वाले है।

आवासीय विद्यालय के स्पेशल शिक्षकों का कहना है कि सामाजिक न्याय विभाग के शिविर में चयनित दिव्यांगों को ट्राइसिकल का वितरण होना है। लेकिन छह महीने से ये ट्रायसिकल यहां रखी है, संयुक्त संचालक के आदेश के बाद इनका वितरण होता है। विभाग के लोग वितरण के लिए बीच बीच में ट्रायसिकल यहाँ से ले जाते हैं। रही बात रखरखाव की तो वह भी सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारियों की ही जिम्मेदारी है।

10 लाख रुपए से ज्यादा कीमत की ट्रायसिकल बंटने के इंतजार में कंडम हो गई है। उधर जरूरतमंद दिव्यांग ट्रायसिकल के लिए भटक रहे है। ऐसे में सवाल यही है कि इस घोर लापरवाही के लिए जिम्मेदारों पर किस तरह का एक्शन देखने मिलता है।

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