पांढुर्णा की सच्चाईः एक ने जिला बना कर छोड़ा तो दूसरे ने मुंह मोड़ा, जिला तो बना पर दफ्तर नहीं ? विकास की उम्मीदें अधूरी, सुविधाएं शून्य


शुभम नांदेकर,पांढुर्णा। मध्यप्रदेश राज्य का 55 वां एवं जबलपुर संभाग का 9 वां जिला पांढुर्णा हैं, जो छिंदवाडा जिले से वर्ष 2023 में अलग होकर अस्तित्व में आया है। मध्यप्रदेश का एक मात्र मराठी भाषी जिले को बने दो साल होते आ रहा है, लेकिन अब तक किसी भी महत्वपूर्ण सरकारी विभाग का स्थायी कार्यालय नहीं बनाया गया है। जिले के लोगों को सरकारी कार्यों के लिए अब भी 100 किलोमीटर दूर छिंदवाड़ा जाना पड़ता है। दफ्तर नहीं, समाधान नहीं प्रशासनिक कार्यों के लिए लोगों की इस परेशानी का समाधान होते नहीं दिख रहा।

शिवराज ने जिला बनाया, मोहन सरकार की उदासीनता
शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने पांढुर्णा को जिला बनाकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया था, लेकिन मुख्यमंत्री मोहन सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कार्य नहीं किया। न तो सरकारी कार्यालयों के निर्माण के लिए फंड जारी किया और न ही मुख्य अधिकारियों की नियुक्ति हुई। विकास की यह धीमी गति पांढुर्णा के लिए निराशा का कारण बनी हुई है।

ट्रेनों के स्टॉपेज न मिलने से यात्री परेशान

कोरोना महामारी के दौरान अस्थायी रूप से बंद किए गए ट्रेनों के स्टॉपेज आज तक बहाल नहीं किए गए हैं, जिससे पांढुर्णा, सौंसर, प्रभात पट्टन और मुलताई विधानसभा क्षेत्रों के लगभग 7 लाख से अधिक यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। पांढुर्णा रेलवे स्टेशन, महाराष्ट्र सीमा के बाद मध्यप्रदेश का पहला बड़ा स्टेशन है और दिल्ली-चेन्नई मुख्य रेलमार्ग पर स्थित होने के कारण इसकी कनेक्टिविटी सामरिक और यात्री सुविधा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्थानीय नागरिकों और जनप्रतिनिधियों की ओर से बार-बार मांग के बावजूद ट्रेनों के ठहराव अब तक बहाल नहीं किए गए हैं। इस विषय में सांसद विवेक बंटी साहू द्वारा रेल मंत्री से संपर्क कर पत्राचार भी किया गया, लेकिन रेल मंत्रालय की ओर से अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।

जब पांढुर्णा तहसील और कमलनाथ थे सांसद
यह स्थिति तब और विडंबनात्मक प्रतीत होती है जब यह देखा जाए कि पूर्व में, पांढुर्णा केवल तहसील होने के बावजूद कमलनाथ के सांसद रहते कई प्रमुख ट्रेनों का ठहराव यहां नियमित रूप से होता था। आज जब पांढुर्णा जिला बन चुका है, तब उलटे स्थिति में अधिकांश ट्रेनों के स्टॉपेज हटा दिए गए हैं, जो जनता के साथ अन्याय है।

आरटीओ नंबर में भी भेदभाव

मध्यप्रदेश में पांढुर्णा और मैहर दोनों को एक साथ जिला बनाया गया था। जबकि मैहर को नया आरटीओ नंबर मिल चुका है, पांढुर्णा अब तक इससे वंचित है। यह स्पष्ट करता है कि पांढुर्णा जिले के साथ मोहन सरकार भेदभाव कर रही है। आरटीओ नंबर न मिलने से जिले के वाहन मालिकों को अनावश्यक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पांढुर्णा जिला मध्यप्रदेश के सबसे अधिक राजस्व पैदा करने वाले जिलों में से एक है। इसके बावजूद मोहन सरकार ने इस जिले के विकास के लिए बजट में से एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी। यह गंभीर सवाल खड़ा करता है कि क्या पांढुर्णा के साथ राज्य सरकार भेदभावपूर्ण रवैया अपना रही है?

पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेज की मांग अधूरी
पांढुर्णा जिले में पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेज की मांग भी पिछले एक दशक से लंबित है। इसी के साथ लंबे समय से यहां जवाहर नवोदय विद्यालय और एकलव्य मॉडल स्कूल की मांग उठाई जा रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस पहल नहीं हुई। यहां के छात्र उच्च शिक्षा के लिए नागपुर, भोपाल, इंदौर जैसे बड़े शहरों में जाने के लिए मजबूर हैं, जिससे उनके अभिभावकों को भारी आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है।

नेताओं की निष्क्रियता से जनता परेशान
पांढुर्णा जिले के स्थानीय फोटो छाप नेता भी जिले के विकास के लिए गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। चुनावों के दौरान बड़े-बड़े वादे करने वाले जनप्रतिनिधि अब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। विकास कार्यों में उनकी निष्क्रियता से जिले की जनता आक्रोशित है। नेताओं की इस उदासीनता के चलते पांढुर्णा जिले का विकास पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ है।

सांसद का वादा अब तक अधूरा

सांसद बनने के बाद विवेक बंटी साहू ने पांढुर्णा जिले का दौरा कर आभार व्यक्त किया और वादा किया था कि उनका पहला कर्तव्य पांढुर्णा का विकास होगा। लेकिन, अब तक उनके द्वारा किए गए किसी भी वादे का क्रियान्वयन नहीं हुआ है। पांढुर्णा जिले से उन्हें सबसे अधिक मतों से जीत दिलाई गई थी, फिर भी सांसद ने अब तक फंड की कोई व्यवस्था नहीं की। अगर वह चाहते, तो फंड की समस्या का हल निकल सकता था। क्या सांसद अब पांढुर्णा जिले के विकास से विमुख हो गए हैं?

सवाल: कब सुधरेगी स्थिति ?
पांढुर्णा जिले की जनता के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि आखिर कब उनके जिले का समुचित विकास होगा? कब सरकारी कार्यालय बनेंगे, और कब उन्हें छिंदवाड़ा जाने की आवश्यकता नहीं होगी? क्या मोहन सरकार पांढुर्णा को उसका उचित स्थान देगी या यह उपेक्षा यूं ही जारी रहेगी.?

हम तो विपक्ष में बैठे है
नीलेश उइके, विधायक पांढुर्णा का कहना है कि कमलनाथ सरकार होती तो सर्वाधिक फंड पांढुर्णा/छिंदवाड़ा जिले को ही मिलता। अब यह सरकार भाजपा जनप्रतिनिधियों की नहीं सुन रही। हम तो विपक्ष में बैठे है। कांग्रेस विधायकों से सरकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार है।

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