SAGAR जमीन घोटाला में हाईकोर्ट ने सभी पक्षों से दस्तावेज मांगे


मध्यप्रदेश के सागर जिला मुख्यालय से लगभग 03 किलोमीटर की दूरी पर भाग्योदय अस्पताल के ठीक सामने 30 एकड़ मूल्यवान शासकीय भूमि में से 27.82 एकड़ भूमि को सुभाग्योदय डेवलपर्स को सागर के मुस्लिम (खत्री) परिवार द्वारा 1963 में भूमि स्वामी बताकर 2017 में विक्रय कर दिया गया। उक्त भूमि को विक्रय करने की अनुमति राजस्व मंडल, ग्वालियर द्वारा बिना कानूनी अधिकार के दिनांक 06/06/2016 को प्रदान की गई। इस मामले को सागर के अधिवक्ता जगदेव सिंह ठाकुर ने whistleblower के रूप में हाइलाइट किया। मध्य प्रदेश शासन ने इसे गंभीरता से लेते हुए प्रकरण की जांच शुरू की। यह मामला विधानसभा में भी जोर-शोर से उठा।

सागर कलेक्टर ने भी जमीन को सरकारी बताया

तत्कालीन सागर कलेक्टर द्वारा हाईकोर्ट में याचिका क्रमांक 17127/2016 दाखिल कर राजस्व मंडल द्वारा दिनांक 06/06/2016 को दी गई विक्रय अनुमति के आदेश की संवैधानिकता को चुनौती दी गई। इस याचिका में हाईकोर्ट द्वारा दिनांक 13/04/2018, 31/01/2019 और Review No. 874/2018 में पारित आदेशों की संवैधानिकता को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में रिट अपील क्रमांक WA No. 275/2019, 813/2019, 814/2019 और WA 819/2019 दायर कर चुनौती दी गई। सभी प्रकरणों में अधिवक्ता जगदेव सिंह ठाकुर ने ठाकुर लॉ एसोसिएट्स, जबलपुर के माध्यम से हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल कर इंटरवीन किया। 

उक्त सभी रिट अपीलों की दिनांक 07/05/2025 को माननीय मुख्य न्यायमूर्ति श्री सुरेश कुमार कैत और श्री विवेक कुमार जैन की खंडपीठ द्वारा अंतिम सुनवाई की गई। सुनवाई के दौरान हस्तक्षेपकर्ता जगदेव सिंह ठाकुर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, श्याम यादव और शिवांशु कोल ने हाईकोर्ट को बताया कि विक्रेताओं को उक्त विवादित भूमि पर कभी भी भूमि स्वामी अधिकार प्राप्त नहीं हुए और न ही उन्हें उक्त भूमि को विक्रय करने का कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त है। विक्रेताओं द्वारा 1963 में भूमि स्वामी अधिकार प्राप्त होने का दावा किया गया, लेकिन यदि उन्हें यह अधिकार प्राप्त था, तो फिर उक्त भूमि को विक्रय करने की अनुमति क्यों ली गई? 

राजस्व मंडल द्वारा दिनांक 06/06/2016 को पारित आदेश में विक्रेताओं को भूमि स्वामी अधिकार मिलने से संबंधित जिस प्रकरण क्रमांक का उल्लेख किया गया, वह आदेश वास्तव में कभी पारित ही नहीं हुआ। मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 के तहत राजस्व अधिकारियों को इस प्रकार का आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है और न ही लीज पर दी गई भूमि पर संबंधितों को भूमि स्वामी घोषित करने का कोई प्रावधान है। 

सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश शासन की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल श्रीमती जान्हवी पंडित ने 1963 की मूल दायरा पंजी प्रस्तुत की। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इसे गहनता से देखकर पाया कि उक्त प्रकरण क्रमांक में विक्रेताओं का नाम भूमि स्वामी के रूप में दर्ज नहीं है। हाईकोर्ट ने विक्रेताओं से कहा कि यदि उन्हें उक्त भूमि में भूमि स्वामी अधिकार प्राप्त है, तो इसका प्रमाण प्रस्तुत करना उनका दायित्व है। 

यदि भूमि स्वामी अधिकार से संबंधित कोई राजस्व विभाग का आदेश पारित हुआ है, तो उसे अगली सुनवाई से पूर्व हाईकोर्ट में प्रस्तुत किया जाए। कलेक्टर, सागर को भी निर्देश दिया गया कि यदि उक्त प्रकरण में कोई आदेश पारित हुआ है, तो उसे दाखिल करें। प्रकरण की अगली सुनवाई दिनांक 14/05/2025 को अंतिम बहस के लिए निर्धारित की गई है। 

शासन की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल श्रीमती जान्हवी पंडित ने पक्ष रखा। विक्रेताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय अग्रवाल, खरीदार सुभाग्योदय डेवलपर्स की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नगरथ और हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, श्याम यादव और शिवांशु कोल ने पक्ष रखा।

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