‘पानी’ पर ‘पानी की तरह’ पैसा खर्च..फिर भी नहीं बुझी लोगों की प्यास, चट्टानों से रिस रही बूंद पर जिंदा हैं इस गांव के ग्रामीण


अमित पवार, बैतूल। मध्य प्रदेश में पानी पर पानी की तरह पैसा खर्च करने के बाद भी लोग प्यासे हैं। केंद्र सरकार की घर-घर पेयजल पहुंचाने की नल जल योजना पर अरबों रुपए खर्च होने के बाद भी धरातल पर नजर नहीं आ रही है। ग्रामीण आज भी साफ पानी के लिए तरस रहे हैं। ताजा मामला बैतूल का है। जहां ग्रामीण गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हैं।

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क्या है पूरा मामला

जिला मुख्यालय से कुछ किलोमीटर दूर स्थित ग्राम गेहूं बरसा के ग्रामीण आज भी पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। कहने को तो गांव में 6 हैंडपंप हैं, लेकिन सब बंद हैं। ऐसे में गांव से तीन किलोमीटर दूर स्थित झिरिया, जो पहाड़ी चट्टानों के बीच से रिसते पानी का स्रोत है, यह पांच हजार से अधिक ग्रामीणों की प्यास बुझा रही है। साइकिल, बैलगाड़ी और चार पहिया वाहनों से झिरिया तक पहुंचना और पानी लेकर वापस आना ग्रामीणों के लिए रोज की मुसीबत बन गया है। नल जल योजना के काम में करोड़ों खर्च कर दिए गए। लेकिन घटिया काम और भ्रष्टाचार ने ग्रामीणों के मुंह तक पानी की एक बूंद तक नहीं जाने दी।

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जमीनी स्तर पर नहीं दिखता कोई परिणाम

ग्रामीणों का कहना है कि, हर सोमवार टाइम लिमिट की बैठक में पानी को लेकर कई निर्देश जारी किए जा रहे हैं। लेकिन इन निर्देशों का जमीनी स्तर पर कोई परिणाम नजर नहीं आ रहा है। करीब 5 हजार की आबादी झिरिया पर निर्भर होकर जिंदगी जीने पर मजबूर है। ग्रामीण को जहां गांव में पुख्ता इंतजाम की दरकार है तो वहीं जिम्मेदार समस्या के समाधान का हवाला दे रहे हैं।

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अब भीषण गर्मी में पानी की कमी ने गांव के हालात बद से बत्तर कर दिए हैं। गांव की महिलाओं को पानी का इंतजाम करने के लिए सुबह 4:00 बजे उठना पड़ रहा है। दूरदराज कुएं, हैंडपंप और झिरिया पर जाकर पानी लाना पड़ता है। हद तो तब हो जाती है जब पढ़ाई छोड़ स्कूली बच्चों तक को पानी लेने जाना पड़ रहा, और पानी की ज्यादा समस्या होने पर पानी खरीदना भी पड़ रहा है। लेकिन न कोई सुनवाई हो रही न समस्या का समाधान।

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