मोहन भागवत बोले-‘राम मंदिर से जाता है भारत की रोजी रोटी का रास्ता’, चंपत राय को किया सम्मानित


चंकी बाजपेयी, इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर में आज अहिल्या राष्ट्रीय पुरस्कार सम्मान समारोह आयोजित किया गया। जिसमें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत शामिल हुए। उन्होंने श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख चंपक राय को पुरस्कृत किया। कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख ने राम मंदिर को आंदोलन नहीं यज्ञ बताया। साथ ही कहा कि भारत की रोजी रोटी का रास्ता राम मंदिर से ही जाता है। 

द्वादशी का नया नामकरण हुआ है: मोहन भागवत

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा, “द्वादशी का नया नामकरण हुआ है, अब प्रतिष्ठा द्वादशी कहना है। 15 अगस्त को राजनीतिक स्वतंत्रता मिल गई। हमने एक संविधान बनाया, एक विशिष्ट दृष्टि जो भारत के अपने स्व से निकलती है, उसमें से दिग्दर्शित हुआ। लेकिन जो संविधान के भाव थे उसके अनुसार चला नहीं। हमारा स्व क्या है? राम, कृष्ण, शिव सिर्फ हमारे देवी देवता नहीं हैं। राम, कृष्ण शिव भारत को जोड़ते है। हम मतों की ओर मान्यताओं की फिक्र नहीं करते।”

राम मंदिर आंदोलन नहीं यज्ञ था

मोहन भागवत ने आगे कहा कि “राम मंदिर सिर्फ आंदोलन नहीं यज्ञ था। ये नहीं होने देना चाहने वाली कुछ शक्तियों का खेल है कि यह इतना लंबा चला।”उन्होंने स्व. प्रणब मुखर्जी से मुलाकात का किस्सा भी बताया। उन्होंने कहा कि “मैं प्रणब मुखर्जी से मिलने गया था, तब घर वापसी का मुद्दा चल रहा था। उन्होंने कहा था कि 5 हजार वर्षों की परंपरा ने हमको सेकुलरिज्म सिखाया। भारत की रोजी रोटी का रास्ता भी राम मंदिर से जाता है। 1992 के बाद लोग पूछते थे कब बनेगा मंदिर। मैं तब भी कहता कि एकदम से कुछ होता नहीं है। पिछले वर्ष प्राण प्रतिष्ठा हुई, कहीं कोई घटना नहीं हुई। जैसे राज्य की हम कल्पना करते हैं वैसी जगह यह सम्मान का कार्यक्रम है। अयोध्या में मंदिर बना, राम का अब मन में बनना चाहिए। 

राम जन्म भूमि के महामंत्री चंपत राय ने आंदोलन की बताई कहानी

राम जन्म भूमि के महामंत्री चंपत राय ने आंदोलन की कहानी बताई। उन्होंने कहा,”ये विषय जब मेरे पास आया, तब मैनें यही कहा कि मेरा नाम लेना उचित नहीं होगा। यह सम्मान ज्ञात अज्ञात कारसेवकों का है। अयोध्या में भी 3 मंदिरों के विध्वंस की गाथा अंग्रेजो के समय की है। 6 मार्च 1983 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक हिंदू सम्मेलन का आयोजन हुआ था। कांग्रेस के एक विधायक दाऊ दयाल जी कई बार बोल चुके थे कि अयोध्या काशी को मुक्त कराने का समय आ गया है। दाऊ दयाल जी ने इंदिरा को चिट्ठी लिखकर इस्तीफा दे दिया था।” 

नेहरू ने मूर्ति हटाने के लिए चिट्ठी लिख दी

चंपत राय ने आगे बताया, “अप्रैल 1984 में संतों को दिल्ली बुलाया गया। धीरे-धीरे पता लगा कि रिकॉर्ड में 75 लड़ाई का वर्णन है। 1934 में हिंदुओं ने 3 ढांचे को तोड़ा। इसका हर्जाना हिंदुओं से लिए गया। 1992 में उन दो नौजवानों से मिलने गया, जिन्होंने 1949 में मूर्ति रख दी थी। 1950 में एक और घटना हुई, नेहरू ने मूर्ति हटाने के लिए चिट्ठी लिख दी। के के नायर जैसे न्यायमूर्ति ने मना कर दिया। नाबालिग रामलला के नाम से मुकदमा दायर किया गया, ओर नाबालिग के अधिकार के चलते मुकदमा स्वीकृत हो गया।”

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