MP NEWS – बिजली कंपनी के DGM रिश्वतखोरी के मामले में गिरफ्तार, कलेक्शन एजेंट नियुक्त किया था


मध्यप्रदेश विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारी अपने बयानों में बड़ी ईमानदारी की बात करते हैं परंतु असलियत इससे बिल्कुल उल्टी है। जबलपुर में मध्यप्रदेश विद्युत वितरण कंपनी की सोलर शाखा में पदस्थ DGM हिमांशु अग्रवाल इतनी ज्यादा रिश्वत लेते थे कि उन्होंने रिश्वत की रकम के कलेक्शन के लिए एक प्राइवेट ऑफिसर नियुक्त किया था। लोकायुक्त पुलिस ने एक छापवर कार्रवाई के बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया। 

DGM हिमांशु अग्रवाल ठेकेदारों को दिल्ली की धमकी देते थे

यह कार्रवाई नागपुर की रोशनी सोलर कंपनी के मैनेजर विष्णु लोधी की शिकायत पर की गई थी। बताया क्या है कि, हिमांशु अग्रवाल ने रिश्वत के लिए सहयोगी ठेकेदार हिमांशु यादव को बतौर असिस्टेंट नियुक्त किया था। वह क्यूआर कोड के जरिए रिश्वत का लेन-देन करता था। यही नहीं डीजीएम ने अपने रिश्तेदारों के नाम पर कंपनियां खोल रखी थीं। विभाग का अधिकतर काम वे अपनी ही कंपनियों से करवाते थे। जो भी वेंडर इसका विरोध करता, उसे धमकी दी जाती कि ‘मिनिस्ट्री ऑफ पावर, भारत सरकार तक मेरी पहुंच है।’

बर्थडे गिफ्ट समझकर दे दो 40 हजार रुपए

नागपुर की रोशनी सोलर कंपनी का लाइसेंस करीब 12 दिन पहले समाप्त हो गया था। इसका डीजीएम हिमांशु अग्रवाल को नवीनीकरण करना था। 18 दिसंबर को डीजीएम का जन्मदिन था। इस मौके पर बधाई देने के लिए विष्णु मिठाई और बुके लेकर उनके ऑफिस पहुंचे और शुभकामनाएं दीं। इस पर डीजीएम ने कहा, ‘80 किलोवाट का काम कर चुके हो। 500 रुपए प्रति किलोवाट के हिसाब से 40 हजार रुपए होते हैं। इसे जन्मदिन का गिफ्ट समझकर दे दो।’ विष्णु ने कहा कि यह राशि बहुत ज्यादा है। इस पर डीजीएम ने जवाब दिया, ‘ ठीक है, रियायत दे रहे हैं, 30 हजार रुपए दे दो।’ इसके बाद दो दिन का समय लेकर विष्णु वहां से वापस लौट गए।

नंबर पर देकर कहा- इस पर कॉल कर लो

इस बीच विष्णु लोधी ने लोकायुक्त से शिकायत कर दी। परीक्षण में शिकायत सही निकली। तब से टीम शिकायतकर्ता के आसपास ही थी। 20 दिसंबर को विष्णु दोपहर में जब रिश्वत की रकम लेकर डीजीएम हिमांशु अग्रवाल के पास पहुंचे। वहां कुछ लोग पहले से बैठे थे। उनसे बातचीत के बीच हिमांशु अग्रवाल ने विष्णु को एक मोबाइल नंबर दिया। यह नंबर उनके सहयोगी हिमांशु यादव का था। डीजीएम ने कहा, ‘इसे अभी कॉल कर लो और यहां से जाओ।’ इसके बाद विष्णु केबिन से बाहर निकल गए।

लोकायुक्त पुलिस को लग रहा था कि यदि रिश्वत नहीं ली गई, तो उनका ऑपरेशन असफल हो जाएगा। करीब आधे घंटे बाद विष्णु को फिर से डीजीएम के केबिन में भेजा गया। उन्होंने बताया कि जो नंबर आपने दिया था, वह मिस हो गया है। इसके बाद हिमांशु अग्रवाल ने फिर से वही नंबर दिया। विष्णु ने केबिन से ही हिमांशु यादव को कॉल किया और बाहर आ गए। इधर, हिमांशु अग्रवाल ने तुरंत हिमांशु यादव को वॉट्सऐप कॉल कर बताया कि ‘बंदा थोड़ी देर में आ रहा है।’

रुपए लेने के लिए दो बार बदली जगह

20 दिसंबर की दोपहर जब विष्णु ने हिमांशु यादव को कॉल किया, तो उसने कहा कि वह बेटे को स्कूल लेने गया है और 2 बजे कॉल करेगा। थोड़ी देर बाद हिमांशु यादव ने विष्णु को शक्ति भवन के गेट के पास बुलाया। जब विष्णु वहां पहुंचे, तो हिमांशु यादव को शक हुआ कि कोई उनका पीछा कर रहा है। इसके बाद उसने जगह बदल दी और रामपुर रोड के पास बुलाया। विष्णु बाइक से बताए स्थान पर पहुंच गए। थोड़ी देर बाद हिमांशु यादव कार में सवार होकर सड़क के दूसरी ओर पहुंचे और कार में बैठे-बैठे ही आने का इशारा किया। विष्णु ने सड़क पार कर 30 हजार रुपए दिए। जैसे ही हिमांशु यादव ने रिश्वत ली, लोकायुक्त पुलिस ने उसे पकड़ लिया।

यह ठेकेदार है, मैं इससे ज्यादा नहीं जानता

गिरफ्तारी के दौरान हिमांशु यादव ने रिश्वत के पैसे फेंकते हुए कहा, ‘मैं इसे नहीं जानता।’ वह कार स्टार्ट कर भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन लोकायुक्त पुलिस ने उसे पकड़ लिया। टीम ने उसकी कार की चाबी और मोबाइल जब्त कर लिया। पुलिस जब हिमांशु यादव को लेकर डीजीएम हिमांशु अग्रवाल के केबिन पहुंची, तो वहां भीड़ देखकर डीजीएम ने पूछा, ‘यह सब कौन है?’ लोकायुक्त डीएसपी ने कहा, ‘रिश्वत के पैसे मिल गए हैं।’ डीजीएम ने सफाई दी, ‘यह ठेकेदार है, मैं इससे ज्यादा नहीं जानता।’ इस पर पुलिस ने कहा, ‘आपके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।’

रिश्वत के लिए अलग व्यक्ति नियुक्त

दरसअल, लोकायुक्त ने सबसे पहले जिस हिमांशु यादव काे पकड़ा है, उसे रिश्वत के लेन-देन के लिए हिमांशु अग्रवाल ने ही नियुक्त किया था। वह ठेकेदारों से रिश्वत के पैसे लेने का काम करता था। शुक्रवार की शाम लोकायुक्त पुलिस कार्रवाई कर रही थी, तब भी कुछ लोग बाहर खड़े नजर आए। एक व्यक्ति ने बताया कि डीजीएम ने उन्हें हिमांशु यादव का नंबर दिया था और कहा था कि ‘काम इसी से हो जाएगा।’

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