DIWALI भाई दूज तिलक एवं पूजा का शुभ मुहूर्त, चौघड़िया के अनुसार
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज मनाया जाता है। यह दीपावली के त्यौहार का पांचवा दिन है। दिनांक 03 नवंबर सन 2024 में भाई दूज का टीका शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:-
चर : 07:42:28 AM – 09:06:26 AM
लाभ : 09:06:26 AM – 10:30:24 AM
अमृत : 10:30:24 AM – 11:54:22 AM
उपरोक्त में से अमृत काल में भाई दूज की पूजा, कथा का श्रवण करना, भाई को तिलक करना, उसे भोजन कराना और स्वयं भी भोजन करना सबसे उत्तम माना गया है। इससे पूर्व चर एवं लाभ काल भी उत्तम मुहुर्त बताए गए। कृपया नोट करें कि मुहूर्त काल के समाप्त हो जाने से पूर्व पूजा एवं विधि का समाप्त हो जाना उचित माना जाता है।
दीपावली की भाई दूज पर क्या क्या करते हैं
कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यह त्योहार मनाया जाता है। भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है भाई दूज (Bhai Dooj) का पर्व। इस दिन सभी बहनें अपने भाइयों के तिलक लगाकर उन्हें सूखा नारियल देती हैं और लंबी उम्र की कामना करती हैं। बदले में भाई बहन को रक्षा का वचन और तोहफे देता है। शादीशुदा महिलाएं अपने भाइयों को घर पर आंमत्रित करती हैं। उन्हें घर बुलाकर तिलक लगाकर स्वादिष्ट भोजन कराती हैं।
दीपावली भैया दूज कथा
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।
यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।