MITS यूनिवर्सिटी में तुलसी महोत्सव का शुभारंभ: ग्वालियर में कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी बोले- धर्म-अध्यात्म से मानसिक बीमारी हो सकती है दूर


कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में तुलसी महोत्सव 2024 के तहत शंखनाद कार्यक्रम का शुक्रवार को शुभारंभ हुआ। वृंदावन धाम के विश्व विख्यात कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी महाराज ने दीप प्रज्वलित कर इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया। डीम्ड यूनिवर्सिटी MITS में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग क्षेत्र के छात्र छात्राएं शामिल हुए। डीम्ड यूनिवर्सिटी MITS में छात्र-छात्राओं के बहुआयामी विकास के लिए साल भर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लेकिन इस बार तुलसी महोत्सव 2024 का खास कार्यक्रम शंखनाद का आयोजन किया गया। जिसके जरिये इंजीनियरिंग क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को गुरुकुल परंपरा के बारे में समझाते हुए किस तरह से आज के दौर में मानसिक अवसादों से युवा पीढ़ी को दूर रखा जा सकता है यह बताया गया। 

शैक्षणिक संस्थानों में आध्यात्मिक संवर्धन महत्वपूर्ण अंग

शंखनाद कार्यक्रम का शुभारंभ वृंदावन धाम के विश्व विख्यात कथा वाचक पुंडरीक गोस्वामी महाराज ने किया। इस दौरान छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आज शैक्षणिक संस्थानों में बहुआयामी प्रोग्रेस वर्धन की बात की जाती है। आज संस्थाओ में योग के जरिये फिजिकल फिटनेस सहित कई तरह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इस तरह बुद्धि के विकास के लिए भी आज बहुत जरूरत है। आज एक छात्र की हर क्षेत्र कला संगीत सहित हर तरह के कार्यक्रमों के जरिए विकास की जरूरत है। जैसे शारीरिक स्वास्थ्य,मानसिक स्वास्थ्य बौद्धिक विकास के लिए शिक्षण संस्थाएं काम कर रही है। इस तरह आज आध्यात्मिक संवर्धन की जरूरत है। आज विश्व भर में मानसिक अवसाद के चलते स्कूल कॉलेज में खुलेआम गोली चलाई जाती है। वहां आध्यात्म की जरूरत है। यही वजह है कि अमेरिका में एक विश्वविद्यालय खोला गया है जहां अध्यात्म के बारे में सभी को सिखाया जाता है। वहां श्रीमद् भागवत गीता की पढ़ाई कराई जाती है। इसलिए आज शैक्षणिक संस्थानों में आध्यात्मिक संवर्धन महत्वपूर्ण अंग होना चाहिए तभी एक अच्छे मानव की उत्पत्ति हो सकती है। 

संस्कृति सभ्यता के जरिए मानव का विकास होता है

पुंडरीक गोस्वामी महाराज ने कहा मनुष्य को मनुष्य जन्म देता है, पर संस्कृति सभ्यता के जरिए मानव का जन्म होता है। भारतीय गुरुकुल परंपराएं थी उसका यही अर्थ था। वेद वेदांत के जरिए सभी तरह का विकास छात्र-छात्राओं का किया जाता था। धर्म अर्थ काम मोक्ष इसकी शिक्षा दी जाती थी। आज गुरुकुल परंपरा में हमें लौटना नहीं है, उसी मूल परंपरा से जुड़कर आगे बढ़ाना है। इस व्यवस्था को राजनीतिक दृष्टि से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। हम रामायण श्रीमद् भागवत गीता जैसे शास्त्रों को छात्र-छात्राओं के जीवन में लाएंगे तो सर्वांगीण विकास हो सकेगा। आज के छात्र-छात्राओं को पढ़ाया जाता है कि भारत की खोज वास्कोडिगामा ने की थी। लेकिन यह शास्त्र उन्हें बताएंगे कि वह भरत, राम, परशुराम, कृष्ण और चाणक्य की संताने हैं तो ऐसे में उन्हें वास्तविक आनंद की अनुभूति हो सकेगी।

धर्म अध्यात्म के जरिए मानसिक बीमारी दूर हो सकती है 

गौरतलब है कि शंखनाद कार्यक्रम के जरिए पुंडरीक गोस्वामी महाराज द्वारा छात्र-छात्राओं के अंदर विकसित हो रहे डिप्रेशन सहित अन्य मानसिक बीमारियों के बारे में भी चर्चा की गई। उन्हें बताया गया कि धर्म अध्यात्म के जरिए वह किस तरह इस मानसिक बीमारी से दूर हो सकते हैं। छात्र-छात्राओं द्वारा सवालों के जरिए अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। डीम्ड यूनिवर्सिटी MITS में तीन दिवसीय कार्यक्रम में अलग-अलग तरह के सेशन आयोजित किए गए हैं।

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