मध्य प्रदेश में खत्म हो रहा है जातिवाद, 8% से घटकर ढाई प्रतिशत रह गया


भारत देश में जातिवाद, राजनीति में सफलता का शॉर्टकट कहा जाता है। कई राज्यों में जातिवाद के कारण सरकार बन जाती है परंतु स्वतंत्रता से लेकर अब तक मध्य प्रदेश के इतिहास में जातिवाद के आधार पर कोई सरकार नहीं बनी। आंकड़े बताते हैं कि 1998 में मध्य प्रदेश में जातिवाद के नाम पर सबसे अधिक 8% वोट हुए, जो लगातार गिरते जा रहे हैं, और 2019 में जातिवाद घटकर ढाई प्रतिशत रह गया। 

मध्यप्रदेश में जातिवाद के घटते आंकड़े पढ़िए

मध्य प्रदेश पूरी दृढ़ता के साथ जातिवाद का विरोध करता है। जातिवाद की राजनीति करने वाली पॉलिटिकल पार्टियों में से केवल बहुजन समाज पार्टी का मध्य प्रदेश में थोड़ा बहुत जन आधार है। समाजवादी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी कभी भी प्रभावशाली स्थिति में नहीं आ पाई। सन 1991 में पहली बार बहुजन समाज पार्टी को मध्य प्रदेश में 3.54 प्रतिशत वोट मिले। सन 1996 में 8.18 प्रतिशत और सन 1998 में 8.70 प्रतिशत वोट हो गए। यह अपने आप में काफी प्रभावशाली आंकड़ा था। किसी चुनाव में लगभग 9% वोट जातिवाद के नाम पर मिल जाए तो चुनाव के नतीजे पलट जाते हैं, यही कारण रहा कि मध्य प्रदेश पर शासन कर रही कांग्रेस पार्टी ने जातिवाद पर फोकस किया। 

मध्य प्रदेश में जातिवाद की राजनीति के कारण सरकार गिर गई

तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह ने बहुजन समाज पार्टी के लगभग 9% वोट पर कब्जा करने के लिए सरकार की पॉलिसी में अभूतपूर्व परिवर्तन किया। सैकड़ो आदेश जारी किए। कई नए नियम बनाए। सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे दिया। 1999 के चुनाव में बसपा का वोट प्रतिशत गिरकर 5.23% रह गया। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने उन्हें समझाने की कोशिश की, मध्य प्रदेश में जातिवाद के आधार पर सरकार नहीं बना सकते लेकिन श्री दिग्विजय सिंह 9% आंकड़ों के लालच में अंधे हो गए थे। पार्टी के भीतर से सभी प्रकार के डिस्टरबेंस रोकने के लिए उन्होंने यहां तक ऐलान कर दिया कि, यदि वह चुनाव नहीं जीत पाए तो 10 साल तक राजनीति से संन्यास ले लेंगे। इसके बाद क्या हुआ सबको पता है। श्री दिग्विजय सिंह न केवल चुनाव हारे बल्कि आज तक हारते चले आ रहे हैं। 

2004 के लोकसभा चुनाव में जातिवाद पर वोट गिरकर 4.75 प्रतिशत रह गया। 2009 के चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग की गई। वोट प्रतिशत बढ़कर 5.85% हुआ, लेकिन सबको समझ में आ गया कि बसपा हर हाल में जातिवाद की राजनीति करेगी। 2014 में 3.80% और 2019 में सिर्फ 2.38 प्रतिशत रह गया। 2024 के चुनाव में इसी अनुपात में और ज्यादा घट जाने की उम्मीद है। 

मध्य प्रदेश में जातिवाद की राजनीति के कारण सरकार नहीं बन पाई

मध्य प्रदेश में जातिवाद की राजनीति को समर्थन नहीं मिलता। सन 2018 के विधानसभा चुनाव में व्यापम घोटाले के कारण गिरते जन आधार को बैलेंस करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने जातिवाद की राजनीति की और इसके कारण भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर होना पड़ा। मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी। उन्होंने कुर्सी पर बैठते ही जातिवाद की राजनीति शुरू कर दी। पूरा मध्य प्रदेश ओबीसी है और यहां पर उन्होंने ओबीसी को दूसरे लोगों से अलग करने की कोशिश की। 27% ओबीसी आरक्षण लागू कर दिया। सत्ता परिवर्तन के बावजूद श्री कमलनाथ ने जातिवाद की राजनीति बंद नहीं की बल्कि 2023 के विधानसभा चुनाव में जातिवाद को मुख्य मुद्दा बना दिया। विधानसभा चुनाव के आंकड़े इस बात के गवाह है कि श्री कमलनाथ को ओबीसी वर्ग का वोट नहीं मिला। यदि 2019 में मुख्यमंत्री बनते ही व्यापम घोटाले की निष्पक्ष जांच करवा देते। 2023 के विधानसभा चुनाव में रोजगार को मुख्य मुद्दा बना देते, तो शायद इतनी शर्मनाक शिकस्त का सामना नहीं करना पड़ता। जातिवाद की राजनीति के कारण श्री कमलनाथ का 40 साल का पोलिटिकल कैरियर बर्बाद हो गया। एक बार फिर मध्य प्रदेश में बुलंद आवाज में कहा कि हमारे यहां जातिवाद नहीं चलता। ✒ उपदेश अवस्थी। 

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