MP में अन्नदाताओं पर सियासत: सिंचाई का रकबा तो बढ़ा, लेकिन किसानों आय में नहीं हुई बढ़ोतरी, कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी ने किया पलटवार


शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मध्यप्रदेश में एक बार फिर किसानों को लेकर सरकार की चिंता दिखाई दे रही हैं। प्रदेश के मुखिया डॉक्टर मोहन यादव ने राजधानी में आयोजित आत्मनिर्भर पंचायत कार्यक्रम में कहा कि कर्ज लेना पर जमीन मत बेचना। खेती बाड़ी में हम पूरे देश को पीछे छोड़ देंगे। लेकिन, एमपी के अन्नदाताओं की स्थिति अलग ही नजर आती है। सरकार बीजेपी की हो या कांग्रेस की अन्नदाताओं को लेकर रिपोर्ट हमेशा ही चिंताजनक रही है।

अगर भारतीय सांख्यिकी कार्यालय( एनएसओ) की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो मध्य प्रदेश के किसानों की औसत आय साल 2018-19 में आठ हजार 339 रुपये प्रतिमाह आंकी गई थी। जो कि वर्ष 2015-16 में 9740 थी। किसानों की आय के मामले में मध्य प्रदेश अन्य राज्यों की तुलना में 26वें नंबर पर रहा है। साल 2003 में एमपी में सिंचाई की क्षमता 7.5 लाख हेक्टेयर थी, जो अब 47 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है। साल 2025 तक 65 लाख हेक्टेयर और अगले पांच वर्ष में एक करोड़ हेक्टेयर तक करने का लक्ष्य भी निर्धारित है।

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सिंचाई क्षमता बढ़ाने के साथ ही कृषि उत्पादन तो बढ़ा है लेकिन, इस अनुपात में किसानों की आय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। कृषि क्षेत्र में पंजाब और हरियाणा से आगे निकलने का लक्ष्य प्रदेश सरकार ने तैयार किया है। जबकि मेघालय, हरियाणा, केरल, उत्तराखंड, कर्नाटक और गुजरात के किसान प्रदेश से कई गुना अधिक बेहतर स्थिति में हैं। प्रदेश में कृषि आय कम होने के चलते किसान अपना मूल काम छोड़ दूसरे व्यापार- व्यवसाय या रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाने के लिए मजबूर हैं। इतना ही नहीं बल्कि मास्टर प्लान के तहत तैयार की गई रिपोर्ट भी इस बात को बताती हैं कि प्रदेश में लगातार कृषि योग्य भूमि कम हो रही है।

कांग्रेस ने लगाया ये आरोप

अन्नदाताओं को लेकर प्रदेश का सियासी पारा फिर चढ़ने लगा है। मामले पर कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मध्य प्रदेश का किसान सबसे ज्यादा परेशान है। प्रदेश प्रवक्ता जितेंद्र मिश्रा ने कहा कि खाद से लेकर बीज और पानी तक महंगा मिल रहा है। सरकार की गलत नीतियों के कारण मध्यप्रदेश में कृषि घाटे का धंधा हो गया है। सरकार सिर्फ कागजी रिपोर्ट में वाहवाही लूटने में माहिर है। जबकि हकीकत यह है कि प्रदेश में कृषि रकबा साल दर साद विभिन्न कारणों से कम होता जा रहा है। बीते 20 सालों में सबसे ज्यादा किसान अन्य प्रदेशों में विस्थापित हुए। सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा के लोगों ने मध्य प्रदेश में जमीन खरीदी। मध्य प्रदेश का कर्ज में डूबा किसान गरीब होता जा रहा है।

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जितेंद्र मिश्रा ने बताया कि सरकार ने स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को भी दरकिनार किया जिसमे उपज का पूरा दम किसानों को दिए जाने की अनुशंसा की गई थी। कांग्रेस ने कहा कि प्रदेश के किसानों के लिए जरूरी है कि उनका कर्ज माफ किया जाए। मध्य प्रदेश की 70 फीसदी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। यदि समय रहते केंद्र समेत राज्य सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो कृषि का रकबा कम होते होते चिंताजनक स्थिति में होगा।

बीजेपी का पलटवार

बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों का जवाब दिया है। प्रदेश प्रवक्ता दुर्गेश केसवानी ने कहा कि विपक्ष का काम सिर्फ आलोचनाओं के साथ आरोप लगाने का है। मनमोहन सरकार के दौरान ही मध्यप्रदेश को कृषि कर्मण अवार्ड मिला। मध्यप्रदेश में ऐतिहासिक परिवर्तन हुआ है। कृषि के क्षेत्र में कांग्रेस शासनकाल के दौरान साढ़े चार लाख हेक्टेयर में सिंचाई होती थी, जो वर्तमान में 50 लाख हेक्टेयर के पार है। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के जरिए प्रदेश का किसान खुशहाल है। विकसित मध्यप्रदेश को देख कांग्रेस के पेट में दर्द होना भी स्वाभाविक है।

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