वन रक्षक की अनूठी पहल: आदिवासी गांवों मे जगा रहा शिक्षा की अलख, दूरस्थ अंचलों में बच्चों को स्वयं के व्यय पर दे रहे प्राथमिक अक्षर ज्ञान


मनीष जायसवाल, बुरहानपुर। मध्य प्रदेश कीसरकार की ओर से प्रदेश में सर्व साक्षरता मिशन के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, जिससे प्रदेश में हर व्यक्ति साक्षर बन सके। वहीं कुछ ग्रामीण इलाके ऐसे भी हैं जहां सरकार की ओर से चलाई जा रही इन योजनाओं का लाभ अंतिम पंक्ति तक नहीं पहुंच पा रहा है। जिसके चलते आदिवासी अंचलों में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इन क्षेत्रों में न बिजली है और न ही पीने के लिए साफ पानी और न ही बच्चों को शिक्षित करने के लिए स्कूल।

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बच्चों में पढ़ने की ललक लेकिन स्कूलों का अभाव

ऐसा ही एक गांव बुरहानपुर जिले के धूलकोट क्षेत्र में स्थित है जहां बच्चों में पढ़ने की ललक तो है, लेकिन यहां स्कूल का अभाव है। जिसके चलते यहां रहने वाले आदिवासी बच्चे दूर-दूर जाकर पढ़ने के लिए मजबूर हैं। घने जंगलों और स्कूलों की दूरी तय करने में असफल ऐसे कई बच्चे हैं जो प्राथमिक शिक्षा से भी वंचित हैं। ऐसे ही क्षेत्र में शिक्षा का अलख जलाने का बीड़ा उठाया है वन विभाग में पदस्थ वनरक्षक कमलेश रघुवंशी ने। उन्होंने आदिवासी बच्चों में पढ़ने की जिज्ञासा देखकर अपने वेतनमान से बच्चों के लिए प्राथमिक स्तर पर अक्षर ज्ञान के लिए छोटी-छोटी शालाओं को संचालित करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने घने जंगलों में बच्चों को प्राथमिक अक्षर ज्ञान देने के लिए किराए के भवनों में स्वयं के व्यय पर शिक्षकों को नियुक्त कर आदिवासी बच्चों को अक्षर ज्ञान देने का प्रयास किया जा रहा है। 

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वनरक्षक ने खुद के खर्च पर रखा शिक्षक

वनरक्षक कमलेश रघुवंशी द्वारा ग्राम पंचायत सूक्ता के मोठी वाडी फालिया में प्रधानमंत्री आवास योजना में बने एक मकान में ही बच्चों के लिए प्राथमिक अक्षर ज्ञान की स्कूल प्रारंभ कर दी है। उन्होंने यहां बच्चों को पढ़ने के लिए स्वयं के व्यय पर शिक्षक भी रखा गया है, जो बच्चों को प्राथमिक अक्षर ज्ञान बखूबी दे रहा है। इस अस्थाई स्कूल में 40 से अधिक आदिवासी बच्चे प्रतिदिन पहुंचकर पढ़ाई भी कर रहे हैं। सुक्ता के अतिरिक्त कमलेश रघुवंशी द्वारा ग्राम पंचायत झिरपांजरिया की मालन बाबा फालिया और अंबा के मलगांव में भी इसी तरह की प्राथमिक शिक्षा के लिए कक्षों को किराए पर लेकर आदिवासी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है।

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वनरक्षक की पहल से आदिवासियों में सम्मान

वनरक्षक की इस पहल से आदिवासी अंचलों में उनके लिए आदिवासियों में काफी सम्मान देखा जा रहा है। वनरक्षक कमलेश रघुवंशी का कहना है कि जिन क्षेत्रों में बच्चों में पढ़ने की ललक है और जो बच्चे असक्षम हैं। वह उन्हें प्राथमिक स्तर पर अक्षर ज्ञान देकर उनके अभिभावकों से बच्चों को आगे अध्ययन के लिए प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं में भिजवाने की बात भी कर रहे हैं। बस जरूरत है कि कमलेश रघुवंशी के चलाए जा रहे इस पहल को जिला प्रशासन गंभीरता से लेकर ऐसी जगह पर शाला भवनों का निर्माण कराया, जहां के आदिवासी बच्चे अन्य क्षेत्रों में पढ़ने जाने में असक्षम हैं।

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