IIT इंदौर का बड़ा शोध: अब नीली रोशनी से बनेगी दवाओं की संरचना, कैंसर-एलर्जी जैसी बीमारियों के इलाज में मिलेगी मदद


हेमंत शर्मा, इंदौर। IIT इंदौर के शोधकर्ताओं ने दवा निर्माण की दुनिया में बड़ा बदलाव करते हुए एक ऐसी पर्यावरण-अनुकूल और किफायती तकनीक विकसित की है। जिससे अब नाइट्रोजन आधारित केमिकल कम्पाउंड विजिबल लाइट यानी सामान्य नीली रोशनी की मदद से बनाए जा सकेंगे। ये कम्पाउंड कई गंभीर बीमारियों जैसे एलर्जी, कैंसर, डिप्रेशन और सूजन के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं में मुख्य घटक होते हैं। अब तक इन हेटरोसाइक्लिक कम्पाउंड को तैयार करने के लिए उच्च तापमान, भारी मात्रा में ऊर्जा और महंगे या हानिकारक केमिकल्स की जरूरत होती थी। लेकिन IIT इंदौर के वैज्ञानिकों ने इसे आसान, सुरक्षित और हरित तकनीक में बदल दिया है। इस पद्धति में कमरे के सामान्य तापमान पर फोटोरेडॉक्स कैटलिस्ट और नीली रोशनी का इस्तेमाल कर यह रासायनिक प्रक्रिया पूरी की जाती है।

किस पर हुआ शोध?

यह शोध विशेष रूप से पाइरिडो[1,2-a]पाइरीमिडिन-4-वन्स नामक नाइट्रोजन युक्त कम्पाउंड पर केंद्रित है। इस संरचना की खासियत यह है कि यह शरीर के भीतर रोगग्रस्त हिस्सों से आसानी से जुड़ जाती है, जिससे दवाएं और अधिक असरदार बनती हैं। इसी श्रेणी की संरचना पर आधारित दवाएं पर्मिरोलास्ट, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी और सूजन के इलाज में भी प्रयोग की जाती हैं।

कैसे काम करती है यह तकनीक?

शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने लैब में एक खास होममेड फोटोरेडॉक्स सेटअप तैयार किया, जिसमें लाइट की वेवलेंथ की सटीक जांच के लिए फोटो स्पेक्ट्रोमीटर और तापमान नियंत्रण के लिए कूलिंग फैन शामिल किया गया। इस तकनीक में एसाइल, एरिल, एल्काइल और एल्केनिल जैसे केमिकल ग्रुप्स को सफलता से जोड़कर उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम प्राप्त किए गए।

क्या बोले वैज्ञानिक?

IIT इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास जोशी ने इस शोध पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह खोज दिखाती है कि मौलिक विज्ञान किस तरह से पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साथ सतत तकनीक में बदल सकता है। IIT इंदौर ऐसे नवाचारों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।” 

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