बंदी की संदिग्ध मौत मामले में CBI जांच की मांग, इधर जेल प्रबंधन दी ये सफाई…


शुभम नांदेकर, पांढुर्णा. छिंदवाड़ा जिला जेल में बंदी की संदिग्ध मौत का मामला तूल पकड़े जा रहा है. मृतक के परिजनों आदिवासी समाज और स्थानीय जनप्रतिनिधि CBI जांच की मांग की है. हालांकि, अभी तक मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है.

दरअसल, पांढुर्णा के ग्राम तिगांव का रहने वाले 45 वर्षीय भाऊराव उइके को 4 जून को पुलिस ने महुआ कच्ची शराब रखने के आरोप में गिरफ्तार किया था. 16 जून को उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी. मृतक के शरीर पर पुराने चोटों के गंभीर निशान मिले हैं, जो यह संकेत देते हैं कि गिरफ्तारी के बाद उसके साथ मारपीट की गई थी.

झूठे केस में फंसाकर मारपीट का आरोप

परिजनों का आरोप है कि उसे झूठे केस में फंसाकर पुलिस और आबकारी विभाग के अधिकारियों ने बेहरमी से पीटा. उन्हें इस बात का भी मलाल है कि बंदी की तबीयत लगातार खराब होने के बावजूद उसे समय रहते उचित इलाज नहीं दिया गया.
बंदी को पकड़ने के बाद उसका मेडिकल परीक्षण हुआ था. लेकिन सवाल यह है कि अगर उसकी हालत खराब थी, तो उसे जेल भेजने की बजाय अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया?

धरने पर बैठे कांग्रेस नेता

आज मंगलवार को क्षेत्रीय विधायक नीलेश उईके, पूर्व विधायक जतन उईके, कांग्रेस पदाधिकारी और बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग धरने पर बैठ गए. उन्होंने जेल प्रबंधन, आबकारी और पुलिस पर आदिवासियों के प्रति क्रूरता और भेदभाव का आरोप लगाया. उनका कहना है कि यह सिर्फ एक बंदी की मौत नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता और अधिकारों पर हमला है.

क्या आदिवासियों पर हो रहा लक्षित अत्याचार ?

इस मामले ने एक बड़े सामाजिक मुद्दे को जन्म दिया है. क्या आदिवासी समाज को शराब जैसे मामलों में जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है? ग्रामीणों का आरोप है कि आबकारी विभाग और पुलिस मिलकर निर्दोष आदिवासियों को पकड़कर झूठे केस बना रहे हैं और फिर उनके साथ मारपीट की जाती है.

जेल प्रबंधन की ओर से हार्ट अटैक की बात

भाऊराव उइके के साथ जो हुआ, वह इसी तरह की प्रताड़ना का परिणाम हो सकता है. यह सवाल प्रशासन के लिए गम्भीर चिंता का विषय बन गया है कि क्या कानून व्यवस्था के नाम पर आदिवासियों को दबाया जा रहा है? मृतक की मौत को लेकर जेल प्रबंधन की ओर से हार्ट अटैक की बात कही जा रही है. लेकिन अब यह दावा सवालों के घेरे में है. पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू की है और मजिस्ट्रियल जांच के आदेश भी जारी कर दिए गए हैं.

हालांकि, अभी तक कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई है. आदिवासी संगठनों और कांग्रेस नेताओं ने चेतावनी दी है कि यदि दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन और उग्र होगा.

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