नगर निगम प्रतिनियुक्ति मामलाः हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने फैसला रखा सुरक्षित, आयुक्त सहित 60 अधिकारियों की Deputation को किया था निरस्त


कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। नगर निगम से जुड़े प्रतिनियुक्ति मामले में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश को चैलेंज करते हुए डिवीजन बेंच में अहम सुनवाई हुई। राहत की उम्मीद को लेकर दायर की गई 6 अपीलों पर सुनवाई के दौरान अपना-अपना पक्ष रखा गया। इस सुनवाई में कर्मचारियों के अलावा शासन ने भी अपील दायर की थी। फिलहाल डिवीजन बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है।

दरअसल पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं ने अपनी अपनी प्रतिनियुक्तियों का स्पष्टीकरण हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के सामने दस्तावेजों के आधार पर रखते हुए खुद को मजबूत बताया। अधिवक्ताओं ने कोर्ट को उन नियमों का हवाला भी दिया जिनके आधार पर वह खुद का पक्ष मजबूती से रखने का प्रयास कर रहे थे। ऐसे में डिवीजन बेंच ने सभी पक्षों को सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया है।

प्रतिनियुक्ति पदों को चैलेंज किया गया

बता दें कि ग्वालियर हाईकोर्ट में डॉ अनुराधा गुप्ता के द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई थी। जिसमें पशु चिकित्सक डॉ अनुज शर्मा की नगर निगम में स्वास्थ्य अधिकारी पद पर प्रतिनियुक्ति को नियमों के विपरीत बताया था। ऐसे में नगर निगम के सभी 61 प्रतिनियुक्ति पदों को याचिका के जरिए चैलेंज किया गया था। हाईकोर्ट ने 20 मई को सुनवाई के बाद याचिका से जुड़ा बड़ा आदेश जारी किया है।

उनके मूल विभाग में भेजने का आदेश

कोर्ट ने निगम में प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे सभी 60 कर्मचारी अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया था, साथ ही सभी को उनके मूल विभाग में भेजने का आदेश दिया है। इसके अलावा निगम आयुक्त पद पर शासन द्वारा IAS संघ प्रिय की पदस्थापना आदेश को भी गलत ठहराया था। हाईकोर्ट का कहना था कि निगम आयुक्त की पदस्थापना नगर निगम की धारा 54 के तहत जारी आदेश के जरिए की जाती है, ऐसे में हाइकोर्ट ने शासन को 15 दिन के भीतर निगम आयुक्त संघ प्रिय का धारा 54 के तहत नया आदेश जारी करने की मोहलत दी थी। तब तक उनकी पदस्थापना को भी अमान्य माना था।

कुछ अधिकारियों को सीधी भर्ती होने तक रोक सकते

जारी आदेश के दायरे में चारों एडिशनल कमिश्नर, सहायक आयुक्त, उपायुक्त भी आये है। आदेश के जरिए निगम की कार्य व्यवस्था प्रभावित होगी। ऐसे में हाईकोर्ट ने निगमायुक्त को निर्देश दिया था कि वह अपने विवेकाधिकार के जरिए तृतीय श्रेणी के प्रतिनियुक्ति पदों में से कुछ जरूरी अधिकारियों को सीधी भर्ती होने तक रोक सकते है। जिनके नाम पद सहित अन्य जानकारी कोर्ट में देनी होगी।

8 महीने के भीतर सीधी भर्ती के आदेश

कोर्ट ने स्पष्ट तौर यह आदेश भी दिया है कि 8 महीने के भीतर सीधी भर्ती के जरिए सभी पदों को भी भरना होगा। लिहाजा सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में राहत की उम्मीद को लेकर अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसको लेकर अब फैसला सुरक्षित कर लिया गया है। जानकारी विश्वजीत रतोनिया- अधिवक्ता पक्षकार ने दी।

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