पानी पुरी बेचने वाले के बेटे ने बनाया रिकॉर्ड: 2 लाख चावल के दानों से बनाई तिरुपति बालाजी की कलाकृति, नीमच के राइस आर्टिस्ट ने रचा इतिहास


आकाश श्रीवास्तव, नीमच। कहते हैं मेहनत और हुनर अगर साथ हो, तो किस्मत को भी झुकना पड़ता है। मध्यप्रदेश के नीमच से एक ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी सामने आई है। जहां एक पानी पुरी बेचने वाले के बेटे ने अनोखी कलाकृति बनाकर रिकॉर्ड कायम कर दिया। अब उसका सपना पद्मश्री हासिल करना है।

चावल से बनाया रिकॉर्ड

दरअसल, नीमच जिले का एक छोटा सा गांव है सुवाखेड़ा। यहां के 18 वर्षीय बबलू दांगी ने चावल के 2 लाख दानों से भगवान तिरुपति बालाजी की 2 फीट ऊँची कलाकृति बनाकर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज करा लिया है। बबलू का परिवार बेहद साधारण है। पिता रमेशचंद्र दांगी मेहनत मजदूरी कर पानी पूरी बेचकर घर चलाते हैं। लेकिन बेटे के हुनर को पंख देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बबलू ने बचपन से ही ड्रॉइंग और क्राफ्ट में रुचि ली। वर्तमान में वह इंदौर में आर्ट एंड क्राफ्ट की पढ़ाई कर रहा है।

चावल की खिचड़ी खाते वक्त आया विचार

बबलू को यह विचार चावल की खिचड़ी बनाते वक्त आया और फिर शुरू हुआ एक अलग ही सफर। 13 मार्च से लेकर 19 मार्च तक लगातार 7 दिन की मेहनत में 3 किलो बासमती चावल, 5 ऐक्रेलिक रंग और महज 500 रुपए की लागत से तैयार हुई यह अभूतपूर्व कलाकृति। बबलू ने हर दिन 4-5 घंटे लगातार काम किया और जब चित्र बनकर तैयार हुआ तो हर कोई देखता रह गया।

इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ नाम

बबलू ने इस चित्र की जानकारी इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड को भेजी और चयन के बाद उसे सर्टिफिकेट, मेडल, और विशेष पहचान प्रदान की गई। उसकी पेंटिंग फिलहाल बेंगलुरु स्थित इंडिया बुक के ऑफिस में प्रदर्शित है।

विश्व की सबसे बड़ी रंगोली टीम का हिस्सा रह चुका है बबलू

बबलू पहले भी नीमच में बनी विश्व की सबसे बड़ी रंगोली टीम का हिस्सा रह चुका है। 84 हजार वर्गफुट में बनी इस रंगोली में देश के 100 महापुरुषों के चित्र बनाए गए थे, और इस प्रयास को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी जगह मिली थी।

पद्मश्री सम्मान पाने का है सपना

अब बबलू का अगला सपना है, नीमच की आरोग्य देवी, महामाया भादवामाता की 9 फीट ऊंची प्रतिमा बनाना, वो भी चावल के दानों से। बबलू चाहता है कि अगली बार उसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में व्यक्तिगत रूप से दर्ज हो और एक दिन उसे पद्मश्री सम्मान भी मिले।

बुलंद हौसलों की ये कहानी ये साबित करती है कि प्रतिभा संसाधनों की नहीं, हिम्मत की मोहताज होती है। बबलू जैसे युवा हमारे देश की असली ताकत हैं, जो कला के ज़रिए भारत का नाम रोशन कर रहे हैं।

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