MP NEWS – आपराधिक मामलों के आरोपियों को मौखिक रूप से बरी करने वाले जज बर्खास्त


मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सिविल जज को नौकरी से निकालने का फैसला सही ठहराया है। जज पर आरोप था कि उन्होंने बिना फैसला लिखे आपराधिक मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया था। मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने कहा कि आरोप गंभीर कदाचार के हैं और इन्हें माफ नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने आगे कहा कि रिकॉर्ड देखने पर पता चलता है कि जज के खिलाफ सभी पांच आरोप सही पाए गए हैं। उन्होंने बिना फैसला लिखे आरोपियों को रिहा कर दिया, जो कि गंभीर मामला है।

महेंद्र सिंह तारम विभागीय जांच में दोषी पाए गए थे

दरअसल, महेंद्र सिंह तारम मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से क्लास II सिविल जज बने थे। जब वे मंडला जिले की तहसील निवास में पदस्थ थे, तब जिला जज (सतर्कता) ने अचानक निरीक्षण किया। निरीक्षण में पाया गया कि तारम ने तीन आपराधिक मामलों में बिना फैसला लिखे ही अंतिम फैसला सुना दिया था। इसके बाद उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और विभागीय जांच की गई। जांच अधिकारी ने सभी पांच आरोपों को सही पाया। तारम को मध्य प्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 के नियम 3 के तहत गंभीर कदाचार का दोषी पाया गया।

महेंद्र सिंह तारम ने बर्खास्तगी के खिलाफ की अपील

तारम ने अपने जवाब में अनुरोध किया कि उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया जाए, लेकिन उन्हें सेवा से हटा दिया गया। उनकी बर्खास्तगी के खिलाफ उनकी अपील भी खारिज कर दी गई। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि समान परिस्थितियों में एक अन्य क्लास II सिविल जज को कम सजा दी गई थी। उसे दो वेतन वृद्धि रोकने की सजा दी गई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि उन पर लगे सभी आरोप आपराधिक मामलों से जुड़े हैं। उन्हें अपना बचाव पेश करने का पूरा मौका दिया गया।

गंभीर मामलों के चलते सख्त एक्शन

कोर्ट ने कहा कि जब हम रिकॉर्ड देखते हैं, तो पता चलता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ सभी पांच आरोप साबित हो गए। ये गंभीर कदाचार के आरोप हैं कि उन्होंने बिना फैसला लिखे आपराधिक मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया, जो कि स्पष्ट रूप से गंभीर प्रकृति के हैं। इसे माफ नहीं किया जा सकता।

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