213, किसी भी Crime पर Session court या Special court डायरेक्ट संज्ञान ले सकता है या नही, जानिए
Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 की धारा 210 में बताया है कि किसी भी व्यक्ति को यह Right है कि वह किसी भी Criminal मामले की शिकायत स्वयं उपस्थित होकर Chief judicial magistrate से कर सकते हैं, परिवादी की Complaint पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संज्ञान लेगा।
अगर किसी विशेष वर्ग (Special class) पर या विशेष क्षेत्र (Special area) अधिकार में हो रहे अत्याचार की सुनवाई के लिए राज्य सरकार के अनुरोध (State government request) पर एक Special court का गठन होता है एवं विशेष व्यक्ति पर हो रहे अत्याचार (Torture) का संज्ञान लेता है एवं सत्र न्यायालय सभी गंभीर आपराधिक (Criminal) मामलों का Trial एवं inquiry करता है। अब सवाल है यह कि कोई शिकायतकर्ता या आम व्यक्ति डायरेक्ट सत्र न्यायालय या विशेष न्यायालय में परिवाद दायर कर सकता है या नहीं जानते हैं इसका जवाब।
Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 की धारा 213 की परिभाषा
अपराधों का सेशन न्यायालयो द्वारा संज्ञान (Cognizance of offences by Court of session) :- कोई भी सत्र न्यायालय किसी भी आपराधिक (Criminal) मामले का संज्ञान तब तक नहीं लेगा जब तक कि किसी Magistrate द्वारा उसे कोई मामला सौंपा नहीं गया हो। अर्थात कोई भी Chief judicial magistrate या ऐसा कोई Magistrate जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्राप्त है उनके द्वारा सौंपे गए मामलों का संज्ञान कोई भी सत्र न्यायालय लेगा।
विशेष न्यायालय द्वारा संज्ञान कब लिया जाता है जानिए
(Know when cognizance is taken by the special court) :-
महत्वपूर्ण जजमेंट ए.एम. कुट्टप्पन बनाम ई. कृष्ण नयनार:-
उक्त मामले में सत्र न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट किया गया था, विशेष न्यायधीश ने अपने समक्ष फाइल की गई शिकायत पर विचार किया जिससे अनुसूचित जाति एवं जनजाति एक्ट, 1989 के अधीन अपराध का आरोप था एवं इस मामले को सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा उसे विचारण हेतु सौपा बिना ही मामले का संज्ञान लेते हुए आदेशिका जारी कर दी। न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया कि विशेष न्यायालय सीधे किसी शिकायत पर विचार नहीं करेगा एवं विशेष न्यायधीश को मजिस्ट्रेट द्वारा मामला सुपुर्द किये बिना सीधे शिकायत पर विचार करने की अधिकारिता नहीं है।
अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय आवश्यक रूप से सत्र न्यायालय हैं और यह तभी मामले का संज्ञान करेगा जब संहिता के नियमो के अधीन मामला उसे न्याहिक मजिस्ट्रेट द्वारा सौपा गया हो। लेखकबी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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