BHOPAL DRM का भ्रष्टाचार देखो, प्यास से तड़प रहे हैं यात्री, कमीशन के लिए टेंडर रोक दिया?


सरकारी भाषा में इसे भ्रष्टाचार नहीं कहते। लाखों यात्री प्यास से तड़प रहे हैं, वाटर वेंडिंग मशीन बंद पड़ी हुई है, लेकिन सरकारी नियमों में इसे अपराध नहीं कहते। लगभग 7 महीने से अधिकारियों ने टेंडर प्रक्रिया रोक रखी थी। सवाल तो करना ही चाहिए कि, जो काम 7 महीने पहले होना चाहिए था, वह क्यों नहीं हुआ, इसके लिए जिम्मेदार के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी। 

अकेले भोपाल रेलवे स्टेशन पर रोज 50000 यात्री परेशान

उल्लेखनीय है कि पिछले लगभग 7 महीने से भोपाल मंडल के अंतर्गत आने वाले रेलवे स्टेशनों पर वॉटर वेंडिंग मशीन बंद पड़ी हुई है। पुराना टेंडर खत्म हो गया था। अधिकारियों ने नया टेंडर नहीं किया। भीषण गर्मी में लाखों यात्री पानी के लिए तरस रहे। मजबूरी में उन्हें महंगी बोतल खरीदनी पड़ रही है। अकेले भोपाल स्टेशन पर रोजाना 200 से अधिक ट्रेनों का संचालन होता है। इन ट्रेनों से रोजना करीब 50 हजार यात्रियों तक पहुंचता है। ऐसे में यह एकमात्र बड़ा स्टेशन है, जहां यात्रियों को हर समय बड़ी संख्या में पानी की जरूरत होती है। वाटर वेंडिंग मशीनें बंद होने के कारण यात्रियों को या तो स्टेशन परिसर में मौजूद प्याऊ से पानी लेना पड़ रहा है या फिर वे बाहर से बोतलबंद पानी खरीदने के लिए मजबूर हैं।

रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को फ्री शीतल पेयजल मिलना चाहिए

भोपाल मंडल के अंतर्गत भोपाल, बीना, इटारसी, विदिशा, होशंगाबाद, हरदा, नर्मदापुरम जैसे बड़े रेलवे स्टेशन आते हैं। इन रेलवे स्टेशन से हर रोज लाखों यात्री, यात्रा करते हैं। ड्रिंकिंग वॉटर भारत में नागरिक का मूल अधिकार है। यह फ्री में उपलब्ध होना चाहिए लेकिन रेलवे ने बड़ी चतुराई के साथ रेलवे स्टेशन पर मिलने वाले फ्री पानी की क्वालिटी को कमजोर होने दिया। फिर वॉटर वेंडिंग मशीन लगाई। एहसान जताया गया कि, बाजार में जो पानी की बोतल ₹15 में मिलती है। वॉटर वेंडिंग मशीन में 10 रुपए में मिल जाएगी। रेलवे वाले इसका मूल्य ₹5 बताते हैं। बड़ी चतुराई के साथ वह केवल पानी का मूल्य बताते हैं। जबकि ₹5 बोतल का मूल्य अलग से लिया जाता है। 

गजब तो यह है कि भोपाल मंडल के रेलवे स्टेशनों पर पिछले 7 महीने से यह मशीन भी बंद पड़ी हुई है। अधिकारियों ने टेंडर नहीं किया। सवाल तो बनता ही है कि यह आपराधिक लापरवाही क्यों की गई। क्या अधिकारी वॉटर वेंडिंग मशीन चलाने वाली कंपनी से कमीशन चाहते थे। डील फाइनल नहीं हो पा रही थी। इसलिए होल्ड कर दी गई थी। पब्लिक परेशान होती रही लेकिन जब तक अधिकारियों को उनका कमीशन नहीं मिल गया तब तक उन्होंने टेंडर प्रक्रिया शुरू नहीं की? 

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