पेयजल की ऐसी किल्लतः बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष, पहाड़ों से रिसते गंदे पानी से ग्रामीण, पशु और जंगली जानवर बुझा रहे प्यास


संजय विश्वकर्मा, उमरिया। देश चांद पर झंडा गाड़ आया है, लेकिन आज़ादी के 78 साल बाद भी मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के आदिवासी गांवों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई है। यहां सिर्फ पीने के पानी की किल्लत ही नहीं, बल्कि गुजारा करने के लिए भी गंभीर जल संकट बना हुआ है। आदिवासी परिवार पहाड़ियों से निकलने वाले पानी पर निर्भर हैं। इसी पानी को उनके पालतू पशु, लंगूर और अन्य वन्य जीव भी पीते हैं।

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एक एक बूंद के लिए तरस रहे ग्रामीण

मामला करकेली विकासखंड की ग्राम पंचायत टकटई के अंतर्गत आने वाले ग्राम मछेहा के छपरा टोला का है। जहां ग्रामीण पहाड़ों से रिसने वाले पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं। इसके साथ ही इसके बगल के गड्ढे से निकलने वाले पानी को नहाने और अन्य काम के लिए उपयोग में लेते हैं। यहां के निवासी बदन सिंह ने बताया कि, जंगल और पहाड़ के नीचे से रिसकर जो पानी आता है, उसी का उपयोग हम करते हैं। गर्मी बढ़ने पर पहाड़ से रिसने वाला यह जल स्त्रोत भी बंद हो जाता है। ऐसे में फिर 2 किलोमीटर दूर मौजूद जोहिला नदी से पानी लाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि पहाड़ों से निकलने वाले पानी में बंदर गंदगी कर देते हैं। लेकिन हम पेड़ भी नहीं काट सकते है। क्योंकि यहां हमारे आराध्य बड़ादेव का स्थान हैं।

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नवल सिंह बताते हैं कि, पहाड़ से निकलने वाला पानी सीमित मात्रा में निकलता है। यदि किसी ने अपने 2 बर्तन पानी से भर लिए तो दूसरे को नहीं मिलता है। फिर घंटों इंतजार करने के बाद पानी दूसरे ग्रामीण को मिल पाता है। हमारे यहां पानी की काफी समस्या है। प्रेमिया बाई ने बताया कि हैंडपंप के लिए 8 से 10 साल से मांग कर रहे हैं लेकिन सरपंच के द्वारा आश्वासन तो मिलता है लेकिन काम नहीं होता।

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क्या बोले कार्यपालन अधिकारी?

मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत अभय सिंह ने बताया कि, जिले में ऐसी कहीं भी स्थिति नहीं है। हाल ही में आपके जाने पर उक्त जल संकट की जानकारी लगी होगी। ‘मैं PHE विभाग माध्यम से दिखवाता हूं‘। अगर जल संकट की स्थित है तो जो संभव हो सकेगा वहां पेय जल के लिए संसाधन उपलब्ध करवाए जाएंगे। यदि वहां हैंडपंप सक्सेज है तो ग्रामीणों को पानी उपलब्ध कराने की कार्रवाई की जाएगी।

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