अकाल मृत्यु से रक्षा और अल्पायु से मुक्ति के लिए महर्षि मृकण्डुजी का सिद्ध मंत्र, पढ़िए


भारतीय संस्कृति (Indian Culture) में सभी धर्मशास्त्रकारों ने, ‘अभिवादनशीलता’ (Respectful Greeting) को महान् धर्म और सदाचार (Virtue) का प्रमुख लक्षण बताया है। महाराज मनु ने अपनी स्मृति के प्रारम्भ में ही अभिवादनशील व्यक्ति को दीर्घायु (Longevity), सद्विद्या (True Knowledge), उत्तम यश (Great Fame) और महान् बल-पराक्रम (Strength and Valor) की सहज प्राप्ति बतायी है। 

महर्षि मार्कण्डेयजी की विशेषताएं

मूलतः महर्षि मार्कण्डेयजी (Maharshi Markandeya) अभिवादनशीलता के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। उनमें विनय (Humility), नम्रता (Politeness), शिष्टाचार (Etiquette), मर्यादा रक्षण (Preservation of Dignity), अभिवादनशीलता, श्रेष्ठजन (Noble People), वृद्धों (Elders) तथा गुरुजनों (Gurujan) के प्रति आदर-बुद्धि (Respectful Attitude), सेवाभाव आदि सद्गुणों का भण्डार भरा था। नित्य विप्रों के अभिवादन करने से जो उन्हें आशीर्वाद (Blessings) प्राप्त हुआ, उसी से वे कालजयी (Timeless) महात्मा (Great Soul) हुए तथा सदा-सदा के लिए अजर-अमर (Immortal) हो गये। 

महर्षि मार्कंडेय जी अल्पायु थे

अपने इस धर्माचरण से ऋषि मार्कण्डेयजी ने संसार में यह सन्देश दिया है कि, “अपने माता-पिता, गुरु तथा श्रेष्ठजन को सदा प्रणाम करना चाहिए और विनीत भाव से सदा उनका अभिवादन करना चाहिए। इससे दीर्घायु प्राप्त होती है और जीवन सफल हो जाता है।” इस बात के प्रमाणीकरण में पुराणों में एक कथा प्रसिद्ध है। ऐसा वर्णन है कि जब मार्कण्डेय पांच वर्ष के थे, एक दिन वे अपने पिता महर्षि मृकण्डुजी (Maharshi Mrikandu) की गोद में खेल रहे थे। उसी समय संयोग से एक महाज्ञानी मर्मज्ञ वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने उस बालक के विशिष्ट लक्षणों को देखकर महर्षि मृकण्डु से कहा, “मुने! आपका यह बालक कोई सामान्य बालक नहीं है। यह दैवीगुणों Divine Qualities) से सम्पन्न है और इससे संसार का महान् कल्याण होने वाला है। इसके शरीर में जो शुभ लक्षण हैं, ऐसे लक्षण किसी में हों तो वह अजर-अमर होता है, किन्तु इस बालक में एक विशेष लक्षण है, जिससे सूचित होता है कि आज के दिन से छः महीने होते ही वह मृत्यु को प्राप्त होगा। अतः आप आज, अब से ही इसके दीर्घ जीवन हेतु कार्य करें।” इतना कहकर वे सिद्ध महात्मा चले गये। 

Maharishi Mrikandu’s proven mantra for protection from untimely death and freedom from short life

महात्माओं की भविष्यवाणी कभी भी मिथ्या नहीं होती। यह सोचकर महर्षि मृकण्डुजी ने मृत्यु टालने हेतु समय के पूर्व ही बालक का यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया और कहा, “बेटा! तुम जिस किसी भी ब्राह्मण (Brahmin) को देखो, तब विनयपूर्वक प्रणाम करना।”

यं कंचिद्धीक्षसे पुत्र भ्रममाणं द्विजोत्तमम्।

तस्यावश्यं त्वया कार्यं विनयादभिवादनम्॥  

ऐसा निर्देश देकर मृकण्डुजी निश्चिन्त हो गये, क्योंकि वे ब्राह्मणों के आशीर्वाद की शक्ति व महत्ता से भलीभाँति परिचित थे। मार्कण्डेयजी पिता की आज्ञा मानकर अभिवादन व्रत में लग गये। जो भी श्रेष्ठजन दिखते, मार्कण्डेयजी बड़े ही भक्ति एवं विनयपूर्वक उन्हें प्रणाम करते। 

इस प्रकार छः महीने बीतने में केवल तीन दिन शेष रह गये। इसी बीच तीर्थयात्रापरायण सप्तर्षिगण (Seven Sages) उधर आ निकले। वहाँ वटुवेष में मार्कण्डेयजी खड़े थे। उनका दर्शन कर मार्कण्डेयजी को बड़ा आनन्द हुआ। उन्होंने श्रद्धा-भक्तिपूर्वक बड़े ही विनीत भाव से बारी-बारी सभी महर्षियों को प्रणाम किया और सबने पृथक-पृथक दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया। महर्षि वसिष्ठजी (Maharshi Vashishtha) ने उस बालक की ओर जब ध्यान से देखा, तो वे समझ गये और सप्तर्षियों से कहने लगे, “अरे! यह महान् आश्चर्य है कि हम लोगों ने इस बालक को ‘दीर्घायु’ होने का आशीर्वाद दे दिया, क्योंकि इस बालक की तो केवल तीन दिन की ही आयु शेष रह गयी है। अतः अब कोई ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे हम लोगों का आशीर्वाद झूठा सिद्ध न हो। हम भी जानते हैं कि विधाता का विधान भी असत्य नहीं हो सकता। अतः इस बालक के चिरंजीवी होने की कोई युक्ति निकालनी चाहिए।” 

सप्तर्षिगण ने परस्पर विचार कर यह निश्चय किया कि ब्रह्माजी को छोड़कर दूसरा कोई भी इस समस्या को हल नहीं कर सकता। अतः इस बालक को उनके आगे ले जाकर उन्हीं की आज्ञा से इसे चिरंजीवी बनाना चाहिए। ऐसा निर्णय करके तीर्थभ्रमण का कार्य रोककर उस ब्रह्मचारी को साथ ले वे शीघ्र ही ब्रह्मलोक में जा पहुँचे। वहाँ ब्रह्माजी को प्रणाम करके वेदोक्त स्तोत्रों (Vedic Hymns) द्वारा उनकी स्तुति करने पश्चात् सब मुनि बैठे।

इसके बाद उस बालक ने भी ब्रह्माजी को प्रणाम किया, और ब्रह्माजी ने भी उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात् ब्रह्माजी ने सप्तर्षियों से पूछा, “आप लोग कहाँ से और किसलिए इस समय यहाँ आये हैं और यह उत्तम व्रत धारण करने वाला बालक कौन है?” सप्तर्षियों ने आने का प्रयोजन और उस बालक के सम्बन्ध में सारी घटना बताकर कहा, “प्रभु! आपने भी इस बालक को यशस्वी, विद्वान तथा दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया है। अतः अब आप और हम सब सत्यवादी बने रहें। हमारी बात झूठी न होने पाये, ऐसा कोई उपाय करें।” 

उनकी बात सुनकर ब्रह्माजी मुस्करा उठे और कहने लगे, “मुनिवरों! आप लोग चिन्तित न हों। इस बालक ने अपने विनय और अभिवादन के बल पर काल (Time) को भी जीत लिया है।” तब ब्रह्माजी ने विचार कर अपनी विशिष्ट शक्ति (Special Power) से मार्कण्डेयजी को अजर-अमर तथा जरामुक्त (Free from Aging) होने का वर प्रदान किया। ब्रह्माजी ने मार्कण्डेयजी को उनके माता-पिता के आश्रम में भेजने को कहा। सप्तर्षिगण बालक को उसके माता-पिता के आश्रम में छोड़कर तीर्थयात्रा पर निकल गये। मार्कण्डेयजी ने सारी कथा अपने माता-पिता को बता दी तथा कहा कि अभिवादन, विनय, नम्रता, शिष्टाचार, मर्यादा रक्षण से दीर्घजीवन होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

यही बात श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने मानव जीवन में दीर्घायु-यशस्वी होने के लिए बाल्यावस्था में इसे अनुकरण करने को तथा श्रीरामजी के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करने को कहा है।

प्रातःकाल उठि के रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥

रामचरितमानस अयो. 205-4 

कथा का नैतिक संदेश:

अभिवादनशीलता, विनम्रता, और श्रेष्ठजनों के प्रति आदर भाव से जीवन में दीर्घायु, यश, और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। माता-पिता, गुरु, और वृद्धों को प्रणाम करने की आदत न केवल जीवन को सफल बनाती है, बल्कि असंभव को भी संभव कर सकती है, जैसा कि मार्कण्डेयजी ने अपने विनय और भक्ति से मृत्यु को जीतकर अमरता प्राप्त की। 

Moral of the Story 

Abhivadanashilata – Respectful greeting, humility, and reverence towards elders and noble people lead to longevity, fame, and blessings. The habit of respectfully bowing to parents, teachers, and elders not only makes life successful but can also make the impossible possible, as Markandeya achieved immortality by conquering death through his humility and devotion.

लेखक

डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता

मानसश्री मानस शिरोमणि, एवं विद्यावाचस्पति

सीनियर एमआईजी – 103, व्यास नगर,

ऋषिनगर विस्तार, उज्जैन, (म.प्र.) पिनकोड – 456010

मो. 9424560115  





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