चित्रकूट की शीतल धारा से महाबली हनुमान को मिली थी लंका दहन की तपन से मुक्ति, हनुमान धारा के रूप में विश्व विख्यात है पहाड़ की गुफा में स्थित यह दिव्य स्थान


अनमोल मिश्रा, सतना। विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित विश्व प्रसिद्ध पौराणिक तीर्थ चित्रकूट के प्रमुख स्थल ‘हनुमान धारा’ का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। पहाड़ के शिखर पर स्थित इस पावन धाम से निकली अविरल जलधारा से असुरराज रावण की सोने की लंका का दहन करने वाले राम भक्त हनुमान को तपन से मुक्ति मिली थी। देश-दुनिया में हनुमान धारा के नाम से विख्यात प्राचीन धाम के दर्शन के लिए प्रतिमाह लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है।

READ MROE: हनुमान जन्मोत्सवः मंगल कलश यात्रा के साथ पण्डोखर धाम में 1111 कुण्डीय श्रीराम महायज्ञ का आगाज

आदि तीर्थ के रूप में समूचे विश्व में विख्यात भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट की महिमा का गुणगान स्वयं संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में किया है। ‘चित्रकूट निश दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत।’ चौपाई के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी ने बताया है कि चित्रकूट ही सृष्टि का एकमात्र ऐसा पावन धाम है जहां पर प्रभु श्रीराम, माता सीता और लखन के साथ नित्य निवास करते हैं। इस पावन भूमि से भक्त हनुमान का भी गहरा संबंध है।

READ MORE: Renuka Chaturdashi: परशुराम की माता के इस मंदिर में होता है चमत्कार, स्वयं एक फीट ऊंची हो जाती है मूर्ति, जानिए क्या है मान्यता

यह स्थान पर्वतमाला के मध्यभाग में स्थित है। पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है। इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है। इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं। यहां 12 महीनें भक्तों का आना जाना लगता रहता है।

भगवान राम के कहने पर चित्रकूट पर्वत पहुंचे हनुमान

एक कथा है कि श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमान जी ने भगवान श्री राम से कहा, ‘‘हे प्रभु लंका को जलाने के बाद तीव्र अग्नि से उत्पन्न गर्मी मुझे बहुत कष्ट दे रही है। मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मैं इससे मुक्ति पा सकूं।” तब प्रभु श्री राम ने कहा, ‘‘चिंता मत करो, आप चित्रकूट पर्वत पर जाओ। वहां आपके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरने से आपको इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी।’’ हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत शृंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का 1008 बार पाठ किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ, ऊपर से जल की एक धारा प्रकट हुई, जिसके पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा निरंतर गिरती है, जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है।

ऐसी है हनुमान धारा मंदिर चित्रकूट की कहानी

हनुमान धारा से एक अन्य कहानी भी जुड़ी हुई है जिसके मुताबिक लंका में आग लगाने के बाद अपनी पूंछ में लगी आग बुझाने के लिए हनुमान जी इसी जगह पर आए थे। ऐसा कहा जाता है कि जब उन्होंने अपनी पूंछ से आग लगाई थी तब उनकी पूंछ पर बहुत जलन हो रही थी। राम राज्य में श्री राम से हनुमान जी से विनती की जिससे अपनी जली हुई पूछ का इलाज कर सके तब श्री राम ने अपने बाण के प्रवाह से एक पवित्र धारा बनाई थी।

हनुमान जल धारा में स्नान करने से खत्म होते हैं ‘पेट’ संबंधी ‘रोग’

इस पर्वत से निकलने वाली धारा की अलग ही विशेषता है। मान्यता है कि इसके जल से स्नान करने से ‘पेट’ संबंधी रोग खत्म हो जाते हैं। इसी वजह से देश भर से आने वाले श्रद्धालु हनुमान धारा के पवित्र जल को ले जाना नहीं भूलते। ऊंची पहाड़ी पर स्थित हनुमान धारा में पहुंचने के लिए पहले श्रद्धालुओं को सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। लेकिन अब रोपवे बन जाने से देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को हनुमान धारा के दर्शन अत्यंत सुगम हो गए हैं।

हनुमान धारा मंदिर चित्रकूट की गायब हो जाती है जलधारा

यह चमत्कारी पवित्र और ठंडी जलधारा पर्वत से निकलकर हनुमान जी की मूर्ति पर गिरती हुई पूंछ को स्नान करवाती हुई नीचे कुंड में चली जाती है।  इस धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है जिस वजह से इसे पाताल गंगा कहा जाता है।

Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *