Talking Tree Tribal Wooden Art: हजारों साल पुरानी कला, सभ्यता और संस्कृति के जीवित प्रमाण, अद्भुत आदिवासी आर्ट देख आप हो जाएंगे हैरान


शशांक द्विवेदी, खजुराहो। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) का खजुराहो (Khajuraho) न सिर्फ देश, बल्कि विदेशी पर्यटकों के भी लोकप्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशनों में से एक है (One of the Popular Tourist Destinations)। यहां की हजारों साल पुरानी कला (Art), सभ्यता (Civilisation) और संस्कृति (Culture) के जीवित प्रमाण (living proof) आज भी मौजूद हैं। जहां खजुराहो की शिल्पकला ही नहीं बल्कि कई तरह की अनोखी अद्भुत आर्ट्स देखने को मिलती हैं। जिनके बारे में शायद ही लोग जानते हैं। तो आइए आज हम आपको ट्राइबल आर्ट के बारे में बताएंगे। जिसे जान आप हैरान हो जाएंगे।

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टॉकिंग ट्री ट्राइबल आर्ट

हम बात कर रहे हैं टॉकिंग ट्री ट्राइबल आर्ट की। जो एक अद्भुत आदिवासी आर्ट है। लेकिन अब कदाचित कम ही देखने को मिलती है, टॉकिंग ट्री ट्राइबल आर्ट उत्तरप्रदेश के आदिवासी वुडन आर्ट है, जिसमें आदिवासी जंगल में सूखे बांस और पेड़ों की जड़ों को अलग-अलग आकार में बदलकर उनमें जान फूंक देते हैं। जिसे किसी जानवर, पक्षी, देवी-देवताओं के स्वरुप में, या फिर अप्सरा के रूप में पेड़ों की जड़ों को एक नए आकार में जीवित स्वरुप में परिवर्तित कर दिया जाता है। यह ऐसा लगता है जैसे मानो वह अब बस बोलने ही वाली है। इसीलिए इस ट्राइबल आर्ट को टॉकिंग ट्री ट्राइबल वुडन आर्ट के नाम से जाना जाता है। इसे टॉकिंग ट्री कूलभिल भी कहा जाता है।

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अपने पिता से विरासत में मिली ट्राइबल आर्ट को आज राजेंद्र सिंह चौहान वुडेन आर्ट को जीवित रखे हुए हैं। और पेड़ों की जड़ों को एक जीवित आर्ट में बदलकर कुछ इस तरह से आकार देते हैं जैसे मानो वह जीवित हो। राजेंद्र सिंह ने बताया कि, खजुराहो में उन्हें बांस और सूखे पेड़ों की जड़ आसानी से मिल जाती है। इसीलिए राजेंद्र सिंह 40 साल से खजुराहो में इस ट्राइबल आर्ट से अपनी आजीविका चला रहे हैं। राजेंद्र सिंह सूखे पेड़ों की जड़ों को एक जीवित आर्ट में परिवर्तित करके जानवर, देवी-देवताओं, अप्सराओं, मुखौटों की आकृति में इस तरह से बदल देते हैं, जो भी देखता है, देखता ही रहता है। खजुराहो घूमने आने वाले पर्यटकों को भी खूब आकर्षित करती है और कीमत भी 100 रुपए से लेकर 5000 तक है। जो हाथों हाथ बिक जाती है।

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