पुलिस रिमांड क्या होती है? क्या DM-SDM भी किसी को पुलिस रिमांड पर भेज सकते हैं?
समाचार माध्यमों से अक्सर हमें पता चलता है कि किसी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को कोर्ट द्वारा पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया है। बहुत सारे लोगों को लगता है कि पुलिस रिमांड का मतलब होता है एक अंधेरे कमरे में गिरफ्तार व्यक्ति को बंद करके पिटाई करना। आइए जानते हैं कि क्या लोगों का यह अनुमान सही है। पुलिस रिमांड क्या होती है और क्या कार्यपालक मजिस्ट्रेट, यानी कलेक्टर अथवा SDM, किसी व्यक्ति को पुलिस रिमांड पर भेज सकते हैं?
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा-187 की परिभाषा सरल भाषा में:
पुलिस अधिकारी, जो किसी क्राइम का इन्वेस्टिगेशन कर रहा है, अपने पास उपलब्ध सबूतों के आधार पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेता है। परंतु यदि गिरफ्तार व्यक्ति से विस्तृत जानकारी एकत्र करने के लिए इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को अधिक समय की आवश्यकता होती है, तब पुलिस ऑफिसर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करेगा और रिमांड की मांग करेगा। ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट अपने विवेक के अनुसार गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस रिमांड पर भेज सकता है। रिमांड की अवधि अधिकतम 15 दिनों तक हो सकती है।
यदि किसी व्यक्ति पर ऐसा आरोप है, जिस अपराध की सजा मृत्युदंड, आजीवन कारावास या 10 वर्ष से अधिक की सजा का प्रावधान रखती है, तो ऐसे आरोपी को मजिस्ट्रेट 90 दिनों के लिए न्यायिक अभिरक्षा, अर्थात जेल में भेजेगा।
लेकिन यदि अपराध अन्य मामलों से संबंधित है, तो किसी भी आरोपी को मजिस्ट्रेट अधिकतम 60 दिनों की न्यायिक अभिरक्षा में भेज सकता है, इससे अधिक नहीं।
क्या DM या SDM किसी व्यक्ति को पुलिस रिमांड पर भेज सकते हैं?
कोई भी कार्यपालक मजिस्ट्रेट, अर्थात DM, SDM या महानगरीय मजिस्ट्रेट, धारा 187 की उपधारा (2क) के अनुसार तब आरोपी को अभिरक्षा में भेजेगा, जब क्षेत्र का अधिकृत न्यायिक मजिस्ट्रेट अचानक छुट्टी पर चला गया हो या उससे संपर्क न हो पा रहा हो।
कार्यपालक मजिस्ट्रेट किसी भी आरोपी को अधिकतम सात दिनों की अभिरक्षा में या पुलिस रिमांड पर भेज सकता है। लेकिन अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी और कार्यपालक मजिस्ट्रेट इसकी एक रिपोर्ट, कारण सहित, लिखित रूप में न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजेंगे।
यदि कोई महिला (स्त्री) आरोपी की उम्र 18 वर्ष से कम है, तो उसे रिमांड के लिए न तो पुलिस अभिरक्षा में और न ही न्यायिक अभिरक्षा में भेजा जाएगा। मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसी स्त्री को धारा 187 (2क) के अधीन मान्यता प्राप्त किसी सामाजिक संस्था या गृह में रखा जाएगा।
लेखकबी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
डिस्क्लेमर – यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।
नियम कानून से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए कृपया स्क्रॉल करके सबसे नीचे POPULAR Category में Legal पर क्लिक करें।