पॉवर गॉशिप: चुनाव हार गए तो क्या, पॉवर तो मंत्री जैसा ही है…खबर दिखाओ मगर ऐसे-वैसे तरीके से नहीं…ऐसे मंत्री जो पर्सनल स्टाफ भी नहीं संभाल पाते…पदाधिकारी तो छोटे से लेकिन बड़ा खेल


(सुधीर दंडोतिया की कलम से)

चुनाव हार गए तो क्या, पॉवर तो मंत्री जैसा ही है

एक केंद्रीय मंत्री की लोकसभा क्षेत्र में उनसे समर्थक विधानसभा का चुनाव क्या हारे, नेताजी का कद कमजोर होने की तभी से चर्चाएं शुरू हो गई थीं. लोगों से मिलने पर नेताजी यह बात बार-बार कहते आ रहे थे कि चुनाव हारने से उनका प्रभाव कमजोर नहीं होना वाला. हाल ही में नेताजी ने अपना प्रभाव दिखाते हुए पसंदीदा अफसर को जिला प्रमुख की सीट पर बैठा ही दिया. अपना प्रभाव झलकाने के लिए अफसर की पोस्टिंग से पहले ही नेताजी ने जिले के प्रमुख नेताओं को बुलाकर ऐलान कर दिया था कि फलां अफसर फलां तारीख से पहले सीट पर आकर बैठ जाएगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही. अब नेताजी के समर्थक भी कहने लगे हैं कि नेताजी चुनाव हार गए तो क्या, पॉवर तो मंत्री जैसा ही है.

खबर दिखाओ मगर ऐसे-वैसे तरीके से नहीं

पहली बार मंत्री बने एक नेताजी को टीवी चैनल पर दिखने और अखबारों में छपने का बड़ा शौक लगा. इसके लिए उन्होंने नए नवाचार से अधिक पुरानी योजनाओं की समीक्षा पर अधिक फोकस करना शुरू कर दिया. लगातार हाइलाइट हो रहे मंत्रीजी ने पब्लिसिटी के लिए उन्होंने पुरानी योजना की समीक्षा की बात कह डाली. यह खबर आग की तरह फैली तो मंत्रीजी बैठ फुट पर आ गए. मंत्रीजी की दलील थी कि खूब खबर दिखाओ, दिखाने में कोई हर्ज नहीं है, मगर ऐसे-वैसे तरीके से नहीं दिखाओ.

ऐसे मंत्री जो पर्सनल स्टाफ भी नहीं संभाल पाते

मध्य प्रदेश के कद्दावर मंत्री, जितनी ऊंची कदकाथी उतना ही ऊंचा रहा उनका रुतबा… समय के साथ अब मध्य प्रदेश में एक बड़े मंत्रालय को संभाल रहे हैं. लेकिन यह सुनकर आपको आश्चर्य होगा की बड़े मंत्रालय को संभालने वाले बड़े मंत्रीजी अपने पर्सनल स्टाफ को नहीं संभाल पाते. पहले मंत्रीजी रसोइयों से परेशान थे. एक रसोईया को आए 10 दिन भी नहीं होते थे कि मंत्री जी के नखरे उठा पाना मुश्किल पड़ जाता. लिहाजा मंत्रीजी को उनका रुतबा मुबारक कर आगे बढ़ जाते. ड्राइवर से लेकर घरेलू कामकाज करने वाले छोटे कर्मचारी और निजी स्टाफ में सदस्य बंगले से लेकर मंत्रालय तक के कर्मचारी-अधिकारी बेहद परेशान रहते हैं. उनका निजी स्टाफ तो यह तक कहता है जब से मंत्री जी मध्य प्रदेश में आए हैं तब से चिड़चिड़ा हो गए हैं. किसी और बंगले में रहना चाहते थे कि और किसी और बंगले में रह रहे हैं. बहुत कुछ असर अपने लगातार होते सीमित दायरे के कारण भी पड़ रहा है. लिहाजा अपने दो-दो मंत्रालय को संभाल नहीं पा रहे हैं औरत और क्षेत्र की जनता भी अब माननीय से लगातार दूर होती जा रही है. हालांकि माननीय का स्वभाव पहले भी इतना मीठा नहीं था कि लोग बिना किसी काम के उनके पास आए.

पदाधिकारी तो छोटे से लेकिन बड़ा खेल

एक बड़ी पार्टी के बड़े पदाधिकारी इन दिनों कुछ ज्यादा सुर्खियों में है. ज्यादा इसलिए क्योंकि पहले भी बिल्डरों के मामले में सुर्खियों में रहे हैं. सुनने में आया है कि भोपाल समेत बड़े शहरों के मास्टर प्लान में बड़ी अहम भूमिका भी निभा रहे हैं. पदाधिकारी के पावर को देखते हुए बड़े-बड़े अधिकारी भी अपनी जमीनों को बचाने के लिए नतमस्तक हैं. हालांकि पदाधिकारी महोदय की इस कलाकारी की जानकारी मंत्रालय समेत प्रदेश के एक आंचल को छोड़कर अन्य अंचलों में न के बराबर मानिए. संबंधित विभाग के माननीय भी पदाधिकारी को छोटा समझ ध्यान नहीं देते. अब संबंधित विभाग को संभाले रहे माननीय भी कभी राज्यों की कमान अपने हाथ में लिया करते थे. ऐसे में छोटे से पदाधिकारी के बड़े-बड़े कारनामों पर उन्हें एतराज भी क्या होगा. बाकी तो जल, जंगल और जमीन का खेल जारी है.

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