कलेक्टर गाइडलाइन में बढ़ोतरी का विरोधः क्रेडाई ने जताई आपत्ति, जानें क्या है इनकी मांगें


शिखिल ब्यौहार, भोपाल. राजधानी में कलेक्टर गाइडलाइन (भूमि) में बढ़ोतरी को लेकर बिल्डरों का विरोध शुरू हो गया है. देश के सबसे बड़े बिल्डरों के संगठन क्रेडाई ने इस बढ़ोतरी के खिलाफ लिखित आपत्ति दर्ज कराई है और इसके लिए केंद्रीय मूल्यांकन समिति से मुलाकात की है. इस आपत्ति में क्रेडाई ने यह भी कहा है कि पिछले 16 वर्षों से इस मुद्दे पर असहमति बनी हुई है.

संगठन ने गाइडलाइन वृद्धि की प्रक्रिया पर फिर से आपत्ति जताई और यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बावजूद राज्य सरकारों ने जिलों की वृद्धि सिफारिशों को मान लिया है. क्रेडाई ने गुजरात, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से नीति सीखने का सुझाव दिया है, जहां हर साल दर बढ़ाने का समाधान नहीं माना जाता.

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संगठन ने शिकायत में लिखा- मध्य प्रदेश शासन के जनसंपर्क संचालनालय की ओर से जारी सूचना के अनुसार, केंद्रीय मूल्यांकन बोर्ड ने जिलों से प्राप्त बाजार मूल्य मार्गदर्शक दरों (गाइडलाइन रेट्स) के प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया है और इन्हें 1 अप्रैल 2025 से प्रभावशील करने का निर्णय लिया गया है. वर्ष 2024-25 के उपबंध और निर्माण दरें यथावत गई हैं.

“हमारा विरोध गाइडलाइन रेट्स में सिर्फ वृद्धि के विरुद्ध नहीं, बल्कि उस प्रणाली के विरुद्ध है. जो वैज्ञानिक नहीं है, संवादात्मक नहीं है, और व्यवहारिकता से कोसों दूर है. हमने 16 वर्षों से इसी प्रक्रिया का विरोध किया है, जिसमें बाजार मूल्य की बजाय अनुमान और उपबंधों के सहारे दरें बढ़ाई जाती हैं”

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सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश स्पष्ट करता है कि सर्किल रेट्स का निर्धारण वैज्ञानिक, पारदर्शी और विशेषज्ञ-आधारित पद्धति से किया जाना चाहिए, जो वास्तविक बाजार मूल्य को प्रतिबंधित करें.

  • वृद्धि की पद्धति में पारदर्शिता नहीं है – जिन जिलों ने वृद्धि प्रस्ताव भेजे, उनके अध्ययन और औचित्य का कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड नहीं है.
  • उपबंध यथावत रहने का अर्थ है, मूल्यवर्धन संरचना बनी रहेगी, जिससे अप्रत्याशित बोझ जारी रहेगा.
  • वास्तविक निवेश और मांग वृद्धि नहीं है, लेकिन गाइडलाइन दरों में वृद्धि से न सिर्फ लेन-देन प्रभावित होगा, बल्कि हाउसिंग फॉर ऑल जैसी योजनाएं भी विफल हो सकती है.

सरकार से क्रेडाई की मांग

  • दरों की समीक्षा स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति से कराई जाए.
  • वर्षवार क्लीन डेटा सार्वजनिक किया जाए.
  • जब तक प्रक्रिया वैज्ञानिक और पारदर्शी न हो, तब तक किसी भी वृद्धि को स्थगित किया जाए.
  • वृद्धि की पद्धति में पारदर्शिता नहीं है – जिन जिलों ने वृद्धि प्रस्ताव भेजे, उनके अध्ययन और औचित्य का कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड नहीं है.

“हमें आज गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे प्रगतिशील राज्यों से सीखने की जरूरत है, जिन्होंने निवेश बढ़ाने की स्थिरता और नीति की पारदर्शिता को प्राथमिकता दी. लगातार रेट बढ़ाना दीर्घकालिक राजस्व नहीं लाता, बल्कि बाजार को अस्थिर कर देता है.”

हाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे प्रगतिशील राज्यों से सीखने की ज़रूरत है, जिन्होंने निवेश बढ़ाने की स्थिरता और नीति की पारदर्शिता को प्राथमिकता दी। लगातार रेट बढ़ाना दीर्घकालिक राजस्व नहीं लाता, बल्कि बाजार को अस्थिर कर देता है.”

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