MP के बीहड़ों में ऐसी गूंजती थी आवाज कि थर-थर कांपने लगते थे लोग, मां कहती थी ‘सो जा बेटा नहीं तो…’ पकड़ने आई पुलिस के नाक-कान काट कर भेजता था वापस


‘ये हाथ हमको देदे ठाकुर’!, कहने की जरूरत नहीं है कि यह डायलॉग किस फिल्म और किस किरदार का है। क्योंकि बुजुर्ग से लेकर युवाओं के जेहन में ये ऐसे बसा है कि कोई नींद में भी पूछेगा तो लोग यही कहेंगे ‘जब बच्चा रोता है, तो मां कहती है बेटा सो जा, सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा’। 1975 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों की लिस्ट में शामिल ‘शोले’ का गब्बर सिंह के किरदार को लोगों ने खूब पसंद किया। लेकिन क्या आप जानते है कि, पचास-पचास कोस दूर गांव का नहीं बल्कि गब्बर सिंह असल में मध्य प्रदेश के ग्वालियर का है। आइए समय के थोड़े पीछे जाते हैं।

आवाज सुन थर-थर कांपने लगते थे लोग

‘मध्य प्रदेश का चंबल’, जब भी यह नाम आता है तो जेहन में बस दो ही शब्द कौंधते हैं, ‘डाकू’। ग्वालियर-चंबल के बीहड़ों में डकैतों का बसेरा हुआ करता था। यहां ‘इसकी सजा मिलेगी… बराबर मिलेगी’, सन 1950 के दशक में एक ‘डाकू’ हुआ करता था, नाम था ‘गब्बर सिंह’। जिसकी आवाज ग्वालियर के बीहड़ों में ऐसी गूंजती थी कि, लोग थर-थर कांपने लगते थे। गब्बर सिंह अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात था। जब भी उसे पकड़ने या फिर इसके खिलाफ कोई पुलिस वाला आता था तो ये उसके नाक-कान काट देता था। लोग बताते हैं ऐसे करने में उसे बड़ा मजा आता था।

ऐसे बदली गब्बर सिंह की जिंदगी

बता दें कि, ग्वालियर के पास भिंड के डांग गांव में सन 1926 में गब्बर सिंह का जन्म हुआ। जिसने अपना जीवन एक दम साधारण तरीके से जिया। लेकिन एक दिन 1955 में डाकू कल्याण सिंह गुर्जर के गैंग में शामिल हो गया। इसके बाद मानो उसकी पूरी जिंदगी ही बदल गई। उसने अपना समय ज्यादा खराब नहीं किया और जल्द ही अपना अलग गैंग बना लिया। इसके बाद देखते ही देखेंगे चंबल घाटी में आतंक का पर्याय बन गया। उस समय सरकार ने गब्बर सिंह पर 50 हजार रुपए का इनाम रखा। और फिर गब्बर सिंह का आतंक 13 नवंबर 1959 में खत्म हुआ।

बॉक्स ऑफिस पर रचा इतिहास

इसी गब्बर सिंह की एक झलक बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ में देखने को मिली। जब 15 अगस्त 1975 में फिल्म रिलीज हुई तो बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रच दिया। फिल्म के किरदार धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, अमजद खान, जया बच्चन, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, जगदीप और असरानी आज भी लोगों को बखूबी याद है। इस फिल्म का निर्देशन रमेश सिप्पी ने किया था। फिल्म को लेकर सबसे दिलचस्प बात यह रही कि जब ‘शोले’ रिलीज हुई तो इसके पहले हफ्ते फिल्म को फ्लॉप मान लिया गया। लेकिन समय का पहिया पलटा और वर्ड ऑफ माउथ का ऐसा जादू चला कि इसने पांच साल तक सिनेमाघरों से उतरने का नाम ही नहीं लिया।

फिल्म के लेखक को पिता ने बताई थी कहानी

जानकार बताते हैं कि, फिल्म के लेखक सलीम खान के पिता मध्य प्रदेश में पुलिस के पद पर थे। तब वे गब्बर के किस्से सुना करते थे। जब बड़े हुए तो उन्होंने उस कहानी को फिल्म की दुनिया में उतारी और गब्बर सिंह के किरदार को दुनिया के सामने पेश किया। जिसका किरदार अमजद खान ने निभाया। और उन्होंने इतनी शिद्दत से निभाया कि आज भी लोग कहते हैं ‘कितने आदमी थे?

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