भोपाल में ‘एकात्म पर्व’ का आयोजन: शंकराचार्य सदानंद सरस्वती बोले- ‘देश का राजा धार्मिक होना चाहिए’


मनीषा त्रिपाठी, भोपाल। पूरे देश को सांस्कृतिक रूप से एकात्म भाव में पिरोने के लिए देश के चारों कोनों पर चार प्रमुख मठों की स्थापना करने वाले जगद्गुरु आद्यशंकराचार्य का रविवार को प्रकटोत्सव था। शंकर प्रकटोत्सव को आलौकिक प्रवाह के साथ अविस्मरणीय उत्सव के रूप में मनाने के लिए मध्यप्रदेश के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में ‘एकात्म पर्व’ का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में द्वारका-शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती एवं अध्यक्ष के रूप में आचार्य महामंडलेश्वर जूनापीठाधीश्वर अवधेशानन्द गिरी, रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द शोध संस्थान के प्रति कुलपति पू. स्वामी आत्मप्रियानंद, मद्रास संस्कृत कॉलेज के आचार्य प्रो. महामहोपाध्याय ब्रह्मश्री मणि द्रविड़ शास्त्री व मध्यप्रदेश संस्कृति एवं पर्यटन विकास के प्रमुख सचिव व शंकर न्यास के न्यासी सचिव शिवशेखर शुक्ला उपस्थित रहे।

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देश का राजा धार्मिक होना चाहिए – पू. शंकराचार्य सदानंद सरस्वती

एकात्म पर्व में उपस्थित वेदांत प्रेमियों को प्रबोधन प्रदान करते हुए द्वारका-शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा कि- जिस अमृतत्व को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को यह देह प्राप्त हुई है, उसी को तत्व को आदि शंकराचार्य ने अपनी रचनाओं में विस्तृत किया है। आद्यशंकराचार्य से संबंधित जितने भी ग्रंथ प्राप्त होते हैं और जिन-जिन घटनाओं का उल्लेख उनके व्यक्तित्व-कृतित्व से जुड़ा हुआ आता है, उससे यह सिद्ध होता है कि आद्यशंकराचार्य अलौकिक अवतार थे। इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश का राजा धार्मिक होना चाहिए।

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अद्वैत वेदांत से ही पूरे विश्व की एकता सिद्ध होगी

अध्यक्षीय प्रबोधन देते हुए जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डेलश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि ने कहा कि – धन्य है मध्यप्रदेश की धरा जहां से आदि शंकराचार्य माता नर्मदा का पूजन-अर्चन कर अपने गुरु से मिले और निकल पड़े अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रसार के लिए। आज 12 ज्योतिर्लिंग सहित कई धर्म स्थलों की स्थापना भगवान शंकराचार्य जी का ही कृपाप्रसाद है। उन्होंने कहा कि अहं और इदं में जगत की रचना शुरू होती है लेकिन सत्य क्या है, सत्य है ‘चिदानंद स्वरूपम शिवोऽहम् शिवोऽहम्’ उन्होंने आगे कहा कि- अस्ति और भांति पर आकर अन्य दर्शन टिक जाते हैं। जबकि अद्वैत दर्शन में कुछ भिन्न नहीं है। जिसमें परिवर्तन है वह सत्य नहीं है। आत्मा को जानिए क्योंकि वह परिवर्तित नहीं होती जबकि देह के परिवर्तन के हम साक्षी हैं इसलिए देह सत्य नहीं है। संसार में आत्म तत्व ही जानने योग्य है।

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