SINGRAULI TOURIST PLACES – माढ़ा गुफा समूह, सातवीं-आठवीं शताब्दी का साक्षात्कार


मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला केवल खनिज संपदा की खान और बिजली उत्पादन की जमीन ही नहीं, अपितु प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की भी खान है। 

माढ़ा गुफा समूह

यह ‘मद’ शब्द से बना है (संस्कृत, तिब्बती, ध्वनात्मक ग्याक्पा)। यह एक बौद्ध शब्द है जिसका अनुवाद “आत्ममोह” या मानसिक मुद्रास्फीति के रूप में किया जाता है। इसे महायान अभिधर्म शिक्षाओं के भीतर बीस सहायक अस्वस्थ मानसिक कारकों में से एक के रूप में पहचाना जाता है। यहाँ पर पहाड़ों को काटकर बनी अनेक गुफाएँ निश्चित रूप से उन श्रमणों के लिए रही होंगी।

विवाह माढ़ा समूह

यह एक लंबी शैलोत्कीर्ण गुफा है जो तीन भागों में बँटी हुई है, इसका मुख उत्तर दिशा की ओर है। मध्य क्षेत्र में स्तंभों पर आधारित मंडप है, जिसके मध्य में गद्दी बनी हुई है, उस पर चतुर्मुख स्तूपनुमा आकृति स्थापित है। आकृति कितनी पुरानी है, यह शोध का विषय है। मंडप के दोनों ओर स्तंभों पर आधारित बरामदा है। बाईं ओर के भाग में तीन कक्ष हैं। यह स्थान मध्य प्रदेश प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1964 के तहत संरक्षित है।

यह संपूर्ण क्षेत्र संभवतः महायान शाखा से संबंधित हो सकता है, क्योंकि इसी श्रृंखला में कुछ दूर अवलोकितेश्वर की मूर्तियाँ और अष्टकोणीय स्तूप भी नगवां ग्राम के आसपास पाए गए हैं, लगभग छह से अधिक स्तूपों के अवशेष बिखरे पड़े हैं।

  • माढ़ा पर्यटन स्थल भोपाल से 671 किलोमीटर तो नजदीकी हवाई मार्ग वाराणसी से 242 किलोमीटर दूरी पर है।
  • ये गुफा श्रृंखला जिला मुख्यालय वैढ़न से 32 किलोमीटर दूरी पर है।
  • इन गुफाओं का निर्माणकाल संभवतः सातवीं-आठवीं शताब्दी के आसपास का माना जाता है।
  • इन गुफाओं की स्थिति और संरचना अन्य बौद्ध और जैन गुफाओं की तरह है।
  • स्तंभों पर कलाकृतियाँ, गुफाओं के अंदर की बैठकी, स्तंभ हूबहू उड़ीसा के रत्नागिरी, पचमढ़ी, हाल में खोजी गई बांधवगढ़, और महाराष्ट्र के अन्य जगहों पर खोजी गई मुनियों की गुफाओं की तरह हैं।
  • माढ़ा गुफाओं में रत्नागिरी की गुफाओं की तरह गणेश माढ़ा, शंकर माढ़ा, विवाह माढ़ा, रावण माढ़ा गुफाएँ हैं।
  • यह क्षेत्र पुरातत्व विभाग की तरफ आशावादी निगाहों से देख रहा है।
  • एकदम शांत, चारों तरफ से ऊँचे-ऊँचे सरई के वृक्षों से आच्छादित, तीन तरफ से गगनचुंबी पहाड़ों से ऐसे घिरा मानो प्रकृति की गोद में बैठा हो।
  • कल-कल बहते विशुद्ध जल के झरने इसे और मनमोहक बना देते हैं।

आज भी यह क्षेत्र जंगली वाशिंदों का घर है, जिनमें जंगली सुअर, भालू, तेंदुआ, लकड़बग्घा और बंदर अपना जीवन चक्र पूरा कर रहे हैं। यूको पार्क क्षेत्र के लोगों और खनन और बिजली उत्पादन में कार्यरत देश के कोने-कोने से आए तकनीकी अभियंताओं और उनके परिवारों के लिए एक सुकून की उम्मीद की तरह है।

  • इस जगह रॉक क्लाइंबिंग, राफ्टिंग, बोटिंग आदि का आनंद लिया जा सकता है।
  • कल-कल बहता झरना हृदय की गहराइयों में आँखों के रास्ते उतर जाता है।
  • यूको पार्क प्री-वेडिंग सूट और ब्लॉग बनाने वालों के लिए वरदान है।
  • कोयला खदानों की प्राणघातक हवा के बीच यह किसी शुद्ध ऑक्सीजन से कम नहीं है।

सिंगरौली के आसपास अनेकानेक वनसंपदा और जलस्रोत रहे होंगे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ के कई गाँवों के नाम प्राकृतिक जलस्रोत के नाम पर पड़े हैं, जैसे झिंगुरदाह, तेलदह, लामीदह आदि।

यहाँ ‘दाह’, ‘दह’ का अर्थ पानी की धार, सिंचाई करने से होता है। आज भी किसान खेत में पानी देने को ‘दहाई करना’, ‘दहाना’ कहते हैं।

इस प्रकृति की गोद में जाकर आप एक दिन की ट्रिप बना सकते हैं, साथ ही वहाँ पर वनभोज का लुत्फ उठा सकते हैं।

इस ऐतिहासिक और प्राकृतिक अनमोल धरोहर को आज पुरातत्व विभाग, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और स्थानीय निवासियों की सच्ची स्नेहपरक दृष्टि की जरूरत है। यह लेख किसी भी प्रकार का वैज्ञानिक दावा नहीं करता है।

लेखक – राकेश कुशवाहा – 9098548373 

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