मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति जारी करने की प्रक्रिया का युक्तियुक्तकरण
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम – 1988 की धारा 19, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता – 2023 की धारा 218 तथा विशेष / अन्य अधिनियमों के अंतर्गत निहित प्रावधानों के अनुसार अभियोजन की स्वीकृति जारी की जाती है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 की धारा 19 (1) (ख) के अनुसार यदि अभिकथित अपराध किये जाने के समय ऐसा व्यक्ति राज्य शासन की मंजूरी के बिना नहीं हटाया जा सकता था तो ऐसी स्थिति में राज्य शासन द्वारा अभियोजन हेतु स्वीकृति जारी की जायेगी ! भ्रष्टाचार- निवारण अधिनियम- 1988 की धारा 19 (1) (ग) के अनुसार अन्य व्यक्तियों की स्थिति में उस व्यक्ति को पद से हटाने के लिए सक्षम प्राधिकारी (अर्थात धारित पद का नियुक्तिकर्ता अधिकारी) अभियोजन हेतु स्वीकृति जारी करने के लिये सक्षम प्राधिकारी होगा।
इस परिपत्र में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, “नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी” से अभिप्रेत है, उस व्यक्ति (जिसके विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति प्रश्नाधीन है) को पद से हटाने के लिए सक्षम प्राधिकारी (अर्थात धारित पद का नियुक्तिकर्ता अधिकारी)।
राज्य शासन द्वारा शासकीय अधिकारी / कर्मचारियों के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति जारी करने की प्रक्रिया का युक्तियुक्तकरण करते हुए पूर्व में जारी किये गये समस्त संदर्भित आदेश/ निर्देशों को निरस्त किया जाकर निम्नानुसार निर्देश जारी किये जाते है:-
1. अन्वेषण अभिकरण से सहमति की स्थिति में अभियोजन स्वीकृति की प्रक्रिया
1.1. अन्वेषण अभिकरण द्वारा अभियोजन स्वीकृति का प्रकरण/आवेदन अभिलेखों सहित नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी को भेजा जायेगा।
1.2. नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी प्रकरण का परीक्षण कर यदि यह पाता है कि प्रकरण अभियोजन की स्वीकृति के योग्य है, तो वह प्रकरण की प्राप्ति से 45 दिन की अवधि के भीतर अभियोजन की स्वीकृति जारी कर, उसे अन्वेषण अभिकरण को प्रेषित करेगा।
1.3. अभियोजन स्वीकृति जारी किये जाने के पश्चात अन्वेषण अभिकरणों द्वारा मान० न्यायालय में चालान प्रस्तुत करने की स्थिति में उसकी सूचना नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी को दी जायेगी जिससे कि अनुवर्ती कार्यवाहियों का
अनुसरण किया जा सके।
1.4. अन्वेषण अभिकरण द्वारा मान० न्यायालय में चालान प्रस्तुत होने की स्थिति में उन्हें सूचीबद्ध कर अनुसरण की कार्यवाही विधि एवं विधायी कार्य विभाग द्वारा की जायेगी!
2. अन्वेषण अभिकरण से असहमति की स्थिति में अभियोजन स्वीकृति की प्रक्रिया
2.1. यदि नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी प्रकरण को अभियोजन स्वीकृति के योग्य नहीं पाता है, तो वह अपने सकारण निष्कर्ष सहित प्रकरण को 30 दिन के भीतर विधिक अभिमत हेतु विधि और विधायी कार्य विभाग को प्रेषित करेगा।
2.2. जिन प्रकरणों में राज्य शासन का प्रशासकीय विभाग नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी नहीं है (अर्थात नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी, राज्य शासन के प्रशासकीय विभाग के अधीनस्थ है) और नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी अन्वेषण एजेंसी से असहमत है तो नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी अपनी असहमति के कारण स्पष्ट रूप से अंकित करते हुए अपना अनंतिम अभिमत 15 दिवस की अवधि में प्रशासकीय विभाग को प्रेषित करेगा। ऐसे मामलों में अभियोजन स्वीकृति / अस्वीकृति की कार्यवाही इस परिपत्र के कंडिका 2.1 से 2.6 के अनुसार प्रशासकीय विभाग द्वारा किया जाकर
विभाग द्वारा ही अभियोजन स्वीकृति / अस्वीकृति के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाकर अंतिम आदेश जारी किया जाएगा।
2.3. विधि और विधायी कार्य विभाग प्रकरण की प्राप्ति से 15 दिवस की अवधि में, प्रशासकीय विभाग को सकारण लिखित अभिमत प्रेषित करेगा।
2.4. यदि विधि और विधायी कार्य विभाग का अभिमत यह है कि अभियोजन अस्वीकृति से वह सहमत है, तो प्रशासकीय विभाग अभियोजन स्वीकृति के आवेदन पत्र को अस्वीकार कर, तदनुसार अन्वेषण अभिकरण को सूचित करेगा।
2.5. यदि विधि विभाग की दृष्टि में अभियोजन स्वीकृति दी जाना चाहिये और पुनर्विचार करने पर प्रशासकीय विभाग विधि विभाग के अभिमत से सहमत होता है, तो प्रशासकीय विभाग 15 दिवस के अंदर अभियोजन स्वीकृति जारी करेगा।
2. 6. पुनर्विचार पश्चात भी प्रशासकीय विभाग के निष्कर्ष एवं विधि और विधायी कार्य विभाग के अभिमत भिन्न होने की दशा में, प्रशासकीय विभाग, प्रकरण संक्षेपिका की 20 प्रतियों के साथ 15 दिवस के अन्दर सामान्य प्रशासन विभाग के माध्यम से अभियोजन स्वीकृति हेतु गठित मंत्रि-परिषद् समिति के विचारार्थ भेजेगा। प्रशासकीय विभाग मंत्रि-परिषद् समिति के निर्णय के अनुसार आदेश जारी करने की कार्यवाही करेगा।
2. 7. कंडिका 2.1 से कंडिका 2.6 में वर्णित समस्त कार्यवाही, अभियोजन स्वीकृति हेतु आवेदन पत्र प्राप्त होने की तिथि से अधिकतम 03 माह की अवधि में अनिवार्य रूप से पूर्ण की जाना चाहिये।
3. परिवाद (Private complaint) के मामलों में अभियोजन स्वीकृति की प्रक्रिया
3.1. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम- 1988 की धारा 19 के परंतुक अनुसार किसी पुलिस अधिकारी, अन्वेषण अभिकरण के किसी अधिकारी या अन्य विधि प्रवर्तन प्राधिकारी से भिन्न व्यक्ति से अनुरोध प्राप्त होने की दशा में समुचित सरकार या सक्षम प्राधिकारी सम्बंधित लोक-सेवक को सुने जाने का अवसर प्रदान किये बिना अभियोजित करने के लिए मंजूरी नहीं देगा।
3. 2. उपरोक्त प्रावधान अनुसार अभियोजन स्वीकृति जारी करने संबंधी परिवाद (Private complaint) के मामलों में मंजूरी देने के पूर्व संबंधित लोक सेवक को सुनवाई का अवसर दिया जाना आवश्यक होगा। ऐसे प्रकरणों में नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी प्रकरण समस्त अभिलेखों सहित प्राप्त होने के उपरान्त सम्बंधित लोक सेवक को सुनवाई का अवसर दिए जाने उपरान्त 03 माह की अवधि में प्रकरण का निराकरण करेगा।
3.3. परिवाद (Private complaint) के मामलों में यदि नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी प्रकरण को अभियोजन स्वीकृति योग्य नहीं पता है तो वह अभियोजन स्वीकृति अस्वीकार कर सकेगा। परिवाद (Private complaint) के मामलों में विधि विभाग से परामर्श करना आवश्यक नहीं होगा।
4. अभियोजन स्वीकृति के वैधानिक सिद्धांत
4. 1. अभियोजन स्वीकृति देने वाले अधिकारी द्वारा स्वीकृति का आदेश पारित करने के पूर्व प्रकरण की सम्पूर्ण तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त करने उपरान्त अपने विवेक का उपयोग करते हुए आदेश पारित करना एक वैधानिक अनिवार्यता है (सी.बी.आई. विरूद्ध अशोक कुमार अग्रवाल (2014) 14 SCC 295)।
4. 2. विभागों द्वारा शासकीय सेवकों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति जारी करने के आदेश में मुख्य रूप से नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी द्वारा स्वविवेक (Application of mind) के प्रयोग पर बचाव पक्ष द्वारा माननीय न्यायालयों में आपतियां उठाई जा रही हैं। इस विषय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय
पर सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं कि नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी द्वारा Application of mind तभी माना जायेगा, जब स्वयं नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी अभियोजन स्वीकृति के समय दस्तावेजों के परिशीलन के बाद प्रथम दृष्टया आधार मानते हुए निर्णय ले एवं नस्ती पर निर्णय लेने में एवं अभियोजन स्वीकृति जारी करने में उनका उल्लेख करें।
4.3. माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्याय दृष्टांत चेन्नारेड्डी विरुद्ध आंध्र प्रदेश राज्य (1996 लॉ सूट SC 1024 ) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार एवं अनियमितता पर विचार कर यह विधि प्रतिपादित की है कि भ्रष्टाचार
निवारण अधिनियम के प्रकरणों में केवल संभावना पर्याप्त नहीं है। अभियोजन के अभिलेख पर ऐसे तथ्य प्रकट होना चाहिए जो विभागीय अनियमितता न होकर अपराध को गठित करता हो अर्थात केवल विभागीय अनियमितता के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई किया जाना उचित नहीं है। अतः जिन मामलों में भ्रष्टाचार (जैसे ट्रैप प्रकरण, आय से अधिक संपत्ति प्रकरण, भ्रष्टाचार की मांग आदि) के साक्ष्य नहीं हो, भारतीय न्याय संहिता 2023 के अंतर्गत अपराध घटित नहीं हुआ हो एवं प्रकरण स्पष्ट रूप से विभागीय अनियमितता की परिधि में आता हो तो ऐसे प्रकरणों सावधानीपूर्वक परीक्षण उपरान्त ही अभियोजन स्वीकृति जारी किया जाना चाहिये।
4.4. शासकीय सेवकों/कर्मियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति के प्रकरण में नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी द्वारा कार्यालयीन नस्ती की नोटशीट में अभियोजन स्वीकृति का अनुमोदन करने में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाये कि अभियोजन के सुसंगत दस्तावेजों जैसे बयान, जब्ती मेमो एवं समस्त दस्तावेजों का अध्ययन कर प्रथम दृष्टया प्रकरण अभियोजन योग्य होने से अभियोजन स्वीकृति प्रदान की गई है। साथ ही विधि की मंशा अनुरूप अभियोजन स्वीकृति के प्रकरणों का समयावधि में निराकरण किया जाये।
5. अभियोजन स्वीकृति जारी करना एवं साक्ष्य
5.1. मध्यप्रदेश शासन के कार्य (आवंटन ) नियम के नियम 6 एवं 7 में निम्नानुसार प्रावधान है :- “6. मध्यप्रदेश शासन के आदेश से या उसकी ओर से किये गये समस्त आदेश या निष्पादित की गई समस्त लिखते इस रूप में अभिव्यक्त की जाएंगी कि वे मध्यप्रदेश के राज्यपाल के नाम से तथा आदेशानुसार किये गये हैं या निष्पादित की गई है।”
“7. उन मामलों के सिवाय, जिनमें किसी अधिकारी को मध्यप्रदेश शासन के किसी आदेश या लिखित पर हस्ताक्षर करने के लिए विशेष रूप से सशक्त किया गया हो, प्रत्येक ऐसा आदेश या लिखित मध्यप्रदेश शासन के या तो मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव, अपर सचिव, संयुक्त सचिव, उप-सचिव या अवर सचिव द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा / की जाएगी तथा ऐसे हस्ताक्षर होने पर यह समझा जाएगा कि ऐसा आदेश या लिखित उचित रूप से प्रमाणीकृत है।”
अतः जिन प्रकरणों में राज्य शासन नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी है उनमें उपरोक्तानुसार वर्णित अधिकारियों के हस्ताक्षर से अभियोजन स्वीकृति जारी / अस्वीकृत की जा सकेगी। अन्य प्रकरणों में नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी द्वारा स्वयं अभियोजन स्वीकृति जारी / अस्वीकृत की जायेगी।
5. 2. अभियोजन स्वीकृति भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 76 एवं 78 के तहत लोक दस्तावेज होने से इनका प्रमाणीकरण जारीकर्ता अधिकारी के कार्यालय के लिपिक द्वारा भी किया जा सकता है एवं इस हेतु स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी को न्यायालयीन साक्ष्य में बुलाने की आवश्यकता नहीं होती है। (के. नरसिम्हाचारी, AIR 2006, सुप्रीम कोर्ट 628) किन्तु यदि आरोपी द्वारा अभियोजन स्वीकृति आदेश की वैधानिकता अथवा स्वीकृतिकर्ता अधिकारी की सक्षमता को चुनौती दी जाती है तब विचारण न्यायालय द्वारा धारा 348, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत शक्तियों का प्रयोग करते हुए स्वीकृतिकर्ता अधिकारी को साक्ष्य हेतु आहूत किया जा सकता है।
5.3. शासन के संज्ञान में आया है अभियोजन स्वीकृति के प्रकरणों में सक्षम अधिकारी द्वारा जारी अभियोजन स्वीकृति के आदेशों में तकनीकी / लिपिकीय त्रुटियाँ होने के कारण जांच एजेन्सियों द्वारा अभियोजन स्वीकृति आदेशों को संशोधित कराया जाता है, जिससे प्रकरणों को न्यायालय में प्रस्तुत करने में अनावश्यक विलम्ब होता है।
सक्षम अधिकारियों द्वारा जारी अभियोजन स्वीकृति आदेशों में निम्नांकित लिपिकीय / तकनीकी त्रुटियां किया जाना शासन के ध्यान में आ रहा है:-
i. अधिकारी के हस्ताक्षर पश्चात पदमुद्रा एवं सील का अभाव होना तथा प्रत्येक पृष्ठ पर हस्ताक्षर एवं पदमुद्रा के साथ नहीं होना।
ii. अभियोजन स्वीकृति आदेशों के प्रत्येक स्थान पर अपराध क्रमांक एवं धारा विशेष पुलिस स्थापना प्रतिवेदन अनुसार न होना।
iii. दस्तावेजों के अवलोकन उपरांत प्रथम दृष्टया अपराध होना पाए जाने से स्व-मस्तिष्क का प्रयोग करते हुए अभियोजन स्वीकृति प्रदान की जा रही है, बावत् स्पष्ट उल्लेख न होना।
iv. अभियोजन स्वीकृति “आदेश” के रूप में न होकर पत्र के रूप में बिना तथ्यात्मक विवरण लेख किए जारी करना।
v. कभी-कभी रिश्वत की राशि, प्राप्ति दिनांक एवं प्रार्थी का नाम भी अभियोजन स्वीकृति आदेश में भिन्न-भिन्न लेख करना।
6. अभियोजन स्वीकृति जारी करने से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
6. 1. दैनिक वेतन भोगी / स्थायी कर्मी / संविदा श्रेणी के कर्मियों के लिए अभियोजन स्वीकृति उसी प्रक्रिया से, जिस प्रक्रिया से नियमित शासकीय सेवकों की अभियोजन स्वीकृति दी जाती है, दी जा सकेगी। आउट सोर्स कर्मचारियों, चूंकि उन्हें किसी निजी एजेंसी के माध्यम से सेवा में रखा जाता है एवं राज्य शासन या शासकीय निकाय इन आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी नहीं है; के लिए अभियोजन स्वीकृति आवश्यक नहीं है, अर्थात उनके विरूद्ध सीधे अभियोजन की कार्यवाही की जा सकती है। इसी प्रकार मानदेय पर कार्य करने वाले कर्मियों के लिए अभियोजन स्वीकृति आवश्यक नहीं है, अर्थात उनके विरूद्ध सीधे अभियोजन की कार्यवाही की जा सकती है।
6.2. शासकीय एजेंसियों (लोकायुक्त पुलिस, ई.ओ.डब्लू., पुलिस आदि) द्वारा प्रस्तुत अभियोजन स्वीकृति के प्रकरणों का परीक्षण करते समय आरोपी अधिकारी/कर्मचारियों द्वारा प्रस्तुत अभ्यावेदन पर प्रकरण में अन्य समानान्तर जांच अथवा सुनवाई करने का प्रावधान नहीं है। केवल परिवाद (Private complaint) के मामलों में मंजूरी देने के पूर्व संबंधित लोक सेवक को सुनवाई का अवसर दिया जाना आवश्यक होगा।
6.3. यदि अन्वेषण अभिकरणों से प्राप्त अभियोजन स्वीकृति प्रस्ताव अपूर्ण है, अपठनीय है अथवा किसी अन्य कारण से प्रथम दृष्टया ही कार्यवाही योग्य नहीं है तो नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी 7 दिवस के अन्दर अभियोजन स्वीकृति प्रस्ताव की त्रुटि के निवारण हेतु अभिकरण को सूचित करेगा।
6. 4. जिन प्रकरणों में पूर्व परिपत्रों की प्रक्रिया अनुसार अंतिम रूप से अभियोजन की स्वीकृति जारी की जा चुकी है, उन पर इस परिपत्र के अंतर्गत पुनर्विचार नहीं किया जायेगा, परन्तु जो प्रकरण अभियोजन स्वीकृति हेतु लंबित हैं, उन्हें इस परिपत्र के अंतर्गत निराकृत किया जायेग।
अतः अभियोजन स्वीकृति के प्रकरणों का परीक्षण करते समय कानून के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित किया जाये। कृपया सभी नियुक्तिकर्ता प्राधिकारियों (जो सम्बंधित शासकीय सेवक / कर्मी हो पद से हटाने के लिये सक्षम प्राधिकारी है) से यह अपेक्षा है कि अभियोजन स्वीकृति के प्रकरणों में ऊपर दिये गये निर्देशों के अनुसार समय-सीमा में कार्यवाही की जाये।