बिना प्राण प्रतिष्ठा के सालों से हो रही थी मंदिर में माता की पूजा, अचानक ट्रस्ट की खुली नींद, फिर… 


एसआर रघुवंशी,गुना। मध्य प्रदेश के गुना शहर के सुप्रसिद्ध धाम हनुमान टेकरी पर स्थित सिद्ध बाबा के स्थान के पास एक छोटा माता का मंदिर है, जहां कई सालों से बिना प्राण प्रतिष्ठा के पूजा पाठ किया जा रहा है। दीपक अगरबत्ती लगाई जा रही थी, यहां प्रसाद व चढ़ावा भी श्रद्धालु चढ़ा रहे थे। अब ट्रस्ट ने पास में ही नवीन मंदिर का निर्माण कर नवीन प्रतिमा लाकर माताजी की प्राण प्रतिष्ठा करा दी है। साथ ही पुराने माताजी के मंदिर की ईटों द्वारा चुनाई कराई जा रही है व प्रतिमा को कपड़े से लपेट दिया गया है।

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हनुमान मंदिर ट्रस्ट ने बताया कि पुराने चबुतरा नुमा मंदिर पर पहले माताजी प्राण प्रतिष्ठा नहीं थी, किसी ने मूर्ति लाकर रख दी थी, जिसकी लोगों ने पूजा प्रारंभ कर दी थी। यह विचित्र है कि ट्रस्ट को इतने सालों बाद ही यह याद आया कि प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता है। इस बारे में पहले क्यों नहीं सोचा गया, यह भी एक सवाल है। बगैर प्राण प्रतिष्ठा के पुजारी वहां बैठे रहते थे और नित्य सेवा पूजा होती थी ।

क्या होती है प्राण प्रतिष्ठा

हिंदू धर्म परंपरा में प्राण प्रतिष्ठा एक पवित्र अनुष्ठान है, जो किसी मूर्ति या प्रतिमा में उस देवता या देवी का आह्वान कर उसे पवित्र या दिव्य बनाने के लिए किया जाता है। ‘प्राण’ शब्द का अर्थ है जीवन जबकि प्रतिष्ठा का अर्थ है ‘स्थापना। ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है ‘प्राण शक्ति की स्थापना’ या ‘देवता को जीवंत स्थापित करना।’

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शास्त्रों और धर्माचार्यों के अनुसार, जब किसी प्रतिमा में एक बार प्राण प्रतिष्ठा हो जाती है, तो वह प्रतिमा एक देवता में बदल जाती है। वह देवता हमारी या किसी भी उपासक की प्रार्थना स्वीकार कर सकते है और अपना वरदान दे सकते हैं। आमतौर पर जब भी प्राण स्थापना होती है, तो उस प्रक्रिया के साथ मंत्रों का जाप,अनुष्ठान और अन्य धार्मिक प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं।  प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया का उल्लेख वेदों में किया गया है।  विभिन्न पुराणों, जैसे मस्त्य पुराण, वामन पुराण, नारद पुराण आदि में भी इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।

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