Exclusive: MP से ‘प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ के खिलाफ बड़ी तैयारी, अब कानून को चुनौती देंगे साधु, संत और सन्यासी
शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मंदिर, मस्जिद और धार्मिक स्थलों को लेकर उपासना स्थल एक्ट (प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट) 1991 को लेकर एक बार फिर बहस जोरों पर है। लेकिन, इसके विरोध का बीज मध्यप्रदेश से अंकुरित हो रहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के तहत सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया कि देश भर के धर्मस्थलों या तीर्थस्थलों के संबंध में किसी अदालत में कोई नया मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा। साथ ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के सर्वे भी नहीं होंगे। अब इन कानून को चुनौती देने की तैयारी मध्य भारत के साधु-संतों के साथ हिंदूवादी संगठन जुट गए हैं। साथ ही राजनीति भी उबाल ले रही है।
मामले पर संत समाज का कहना है कि आजादी के कई शतक पहले आक्रांताओं और विधर्मियों ने मंदिरों को तोड़ मस्जिदों को ताना। जो अन्याय इतिहास में हुआ उसे वर्तमान में न सुधारा गया तो यह भी अन्याय ही हुआ। सनातन विरोधी तत्कालीन केंद्रीय सत्ताधीशों ने विधर्मियों का साथ देते हुए उपासना स्थल एक्ट 1991 हिंदूओं पर थोप दिया था। जब धार की भोजशाला समेत देश भर में 18 याचिकाओं पर सच सामने आने लगा तब इस दमनकारी कानून से न्याय की आस का गला घोंटा जा रहा है।
क्या है उपासना स्थल एक्ट 1991
उपासना स्थल एक्ट साल 1991 में लागू हुआ था। इस कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है। एक्ट उल्लंघन पर जुर्माना और तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया। साथ ही यह भी प्रावधान किया गया कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा। महत्वपूर्ण यह भी है कि एक्ट की धारा 05 में राम जन्मभूमि और विवादित बाबरी ढांचे को इस कानून के प्रावधान से बाहर रखा गया।
*पीवी नरसिम्हा राव सरकार का कानून, यह था मकसद
यह कानून केंद्र में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान लागू हुआ था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे। तब देश में अयोध्या में बाबरी और श्रीराम जन्मभूमि का मुद्दा लगातार जारी था। बीजेपी राम मंदिर निर्माण के खुलकर समर्थन में थी। तब बीजेपी को बहुसंख्यकों का भारी समर्थन मिलने लगा। साथ ही इस राम मंदिर आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और विवादित मस्जिदों पर भी पड़ा। लिहाजा पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने इस कानून को लागू किया। तब भी कांग्रेस सरकार को भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन, तब सदन में कांग्रेस के पास बहुमत था और यह कानून लागू हुआ।
एमपी से उठी संतों की मांग, कानून के विरोध में लेंगे यह एक्शन
उदासीन अखाड़ा से जुड़े और अखिल भारतीय संत समिति के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष स्वामी अनिलानांद महाराज ने मामले पर वीडियो जारी किया है। उन्होंने कहा कि एक धर्म विशेष की दुराचारी नीतियों को संरक्षण के लिए इस कानून को लागू किया गया। यह कानून नहीं है बल्कि करोड़ों सनातनियों की हत्या है। उन्होंने कहा कि समस्त संत समाज की सहमति के बाद केंद्र सरकार से इस कानून के संशोधन की मांग की जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के साथ कानून को चुनौती देने के लिए कानूनी कदम बढ़ाएंगे।
कानून नीति के आधार पर असंवैधानिक, SC के आदेश पर कई सवाल- वीएचपी
विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता व मामले के कानूनी सलाहकार अमितोष पारीक ने बताया कि यह कानून नीति और संविधान की भावनाओं के विपरीत असंवैधानिक है। यह हिंदू समेत समस्त सनातनियों और देश के बहुसंख्यक वर्ग की आत्मा, सभ्यता, संस्कृति से खिलवाड़ है। उन्होंने यह भी कहा कि हैरानी की बात है कि इस मामले को लेकर एक पक्ष की सुनवाई ही नहीं की गई। बिना सुनवाई के ही कानून थोपा गया। सर्वे और अंतिम आदेश पर भी रोक लगाई गई। उन्होंने बताया कि मामले का रिव्यू किया जा रहा है। साथ ही संगठनात्मक के साथ संवैधानिक रूप से भी मामले को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
अब इतिहास की बात करना बेकार, देश तो संविधान से चलता है- उलेमा बोर्ड
ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड के अध्यक्ष अनस अली ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि देश तो संविधान से चलता है। हिंदूवादी संगठनों को भी प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट को समझना चाहिए। यह आस्था का मसला है। दूसरे के धार्मिक स्थलों से छेड़छाड़ की पहल नहीं होना चाहिए। मुगल शासनकाल में मंदिरों को तोड़ मस्जिदों के सवाल कहा कि पुरानी बात करना बेकार है। यह एक्ट ही कानून है। सवाल यह भी है कि इस कानून के होते हुए कैसे मस्जिदों के सर्वे शुरू हुए। आखिर वर्तमान मंदिरों में पूजा-पाठ को छोड़ संभल मस्जिद, भोजशाला समेत अन्य हमारे धार्मिक स्थलों के पीछे क्यों पड़े हैं। यदि ऐसा करना है तो वहां नमाज पढ़िए।
सब बीजेपी की चाल, एमपी साम्प्रदायिक मामलों की नर्सरी- कांग्रेस
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता जितेंद्र मिश्रा ने कहा कि बीजेपी समेत इस कानून की खिलाफ तक वाले समझें कि संविधान ही सर्वोपरि है। यह मांग संत या हिंदू संगठनों की नहीं बल्कि बीजेपी के अंदरखाने की है। यह इस तरीके के मामले को उठाने में कंफर्टेबल महसूस करते हैं। आरएसएस और बीजेपी के लिए मध्य प्रदेश इस तरीके के सांप्रदायिक मामलों की नर्सरी है। बैसाखी की मोदी सरकार अब नया एजेंडा तैयार कर रही है।
मांग उठी है तो विचार भी होगा, कांग्रेस ही देश के बंटवारे का दूसरा नाम- बीजेपी
बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता दुर्गेश केसवानी ने कहा कि साधु, संत, महात्मा यह सब समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। लिहाजा यह मांग भी समाज और जनता के बीच की है। निश्चित ही इसे गंभीरता से लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने एक वर्ग विशेष के लिए देश का बंटवारा किया था। ऐसे कानून को कांग्रेस ने सहमति दी थी। संविधान की मूल भावना से छेड़छाड़ कांग्रेस ने ही की है। अब जनहित और सत्य के लिए मोदी सरकार काम कर रही है।
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