MPTET VARG 3, CTET PAPER 1 CDP NOTES-20 IN HINDI
एमपी टेट पेपर वर्ग 3 और सीटेट पेपर 1 के सिलेबस के क्रम में आगे बढ़ते हुए अगला टॉपिक है वंशानुक्रम एवं वातावरण का प्रभाव (Influence of Heredity & Environment) इससे पहले के टॉपिक को पढ़ने के लिए कृपया Google करें BhopalSamachar.com MPTET VARG 3,CTET PAPER 1 CDP NOTES 1 TO 19 IN HINDI जहां से आपको टॉपिक वाइज, नंबर वाइज NOTES 1 से लेकर 19 तक के नोट्स प्राप्त हो जाएंगे।
MPTET VARG 3/ CTET PAPER 1 TOPIC -पियाजे,पावलव, कोहलर और थार्नडाइक: रचना एवं आलोचनात्मक स्वरूप(Piaget, Pavlov, Kohler and Thorndike: Construction and critical aspects)
मध्य प्रदेश प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा वर्ग 3 एवं CTET PAPER 1 बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र (CDP, Child Development and Pedagogy) के के अंतर्गत जीन पियाजे,पावलव,कोहलर और थार्नडाइक के अनुसार रचना एवं आलोचनात्मक स्वरूप के बारे में चर्चा करेंगे। जिसमें से आज हम सबसे पहले जीन पियाजे के बारे में विस्तार से जानेंगे।
जीन पियाजे – Jean Piaget –
जीन पियाजे को बाल मनोविज्ञान (Child Psychology) का फादर या जनक कहा जाता है। जो कि एक Swiss Psychologist होने के साथ साथ radical constructivism भी थे। उन्होंने विकास की अवस्थाओं पर भौतिक पर्यावरण (Physical Environment) के प्रभाव पर अधिक जोर दिया। उन्होंने बताया कि बच्चे अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं और उन्होंने बच्चों को नन्हे वैज्ञानिक (Little Scientist) भी कहा।
जीन पियाजे ने एक बच्चे के संज्ञानात्मक विकास को 4 अवस्थाओं में विभाजित किया है-
1. इंद्रिय जनित गामक अवस्था(Sensori motor Stage)
2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था(Pre- Operational Stage)
3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था( Concrete- Operational Stage)
4. औपचारिक या अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था(Formal – Operational Stage)
1.इंद्रिय जनित गामक अवस्था – SENSORI MOTOR STAGE OBJECT PERMANENCE
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह जीवन के विकास की वह अवस्था है। जब बच्चे अपने आंखों से, हाथों से, मुंह से, अपने हाथ पैरों से छूकर, जीभ से चाटकर या कहें तो पूरे शरीर से ही सोचते हैं। यह संज्ञानात्मक विकास (cognitive development) की पहली प्रमुख अवस्था है, जब बच्चे अपनी ज्ञानेंद्रियों (sense organs) से सीखते हैं। इस अवस्था को इंद्रिय गामक या सेंसरीमोटर स्टेज (sensorymotor stage) कहा जाता है। “इस अवस्था में बच्चे की ज्ञानेंद्रियां ही उसकी शिक्षक होती हैं।” “senses are THE Teachers in this stage”
जीन पियाजे (Jean piget) एक Swiss psychologist के अनुसार बच्चे या मनुष्य के संज्ञान या ज्ञान (cognition) का विकास उसके पर्यावरण के साथ अंतः क्रिया पर बहुत अधिक निर्भर करता है। भाषा सीखना भी इसी के अंतर्गत आता है। भाषा की ध्वनियाँ और शब्द पर्यावरण में मौजूद विभिन्न क्रियाओं के प्रतीक होते हैं। इस अवस्था की एक और मुख्य विशेषता है वस्तु स्थायित्व (Object permanance) जो कि लगभग 9 से 15 महीने की अवस्था में आ जाता है। मतलब 9 महीने से पहले बच्चा यह नहीं समझता कि जो चीज उसकी आंखों के सामने नहीं है, वह वास्तव मे मौजूद (exist) है या नहीं। मतलब 9 महीने से पहले बच्चा किसी चीज या खिलौने के लिए के लिए रोएगा नहीं परंतु अब 9 महीने के बाद रोएगा।
2.पूर्व संक्रियात्मक अवस्था – Pre- Operational Stage, CHILDREN ARE LITTLE SCIENTIST
जीन पियाजे (A swiss Psychologist) जिन्होंने बच्चों को नन्हे वैज्ञानिक यानी Little scientist भी कहा। उनके अनुसार यह अवस्था पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre operational stage ) कहलाती है जो लगभग 2 से 6 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में बच्चे animism (जीववाद) में विश्वास करते हैं। उन्हें निर्जीव चीजें भी सजीव लगती हैं। उदाहरण के तौर पर यदि उसे किसी चीज से चोट लग जाए तो जब तक हम उस चीज को मारते नहीं है, तब तक उसको अच्छा नहीं लगता। वह सोचता है कि इस चीज की वजह से मुझे चोट लगी है तो इसको भी मारना चाहिए। वह सोचता है कि वह वस्तु भी जीवित ही है। इस अवस्था में बच्चा ( Egocentric) अर्थात अहम केंद्रित होता है। वह खुद के अलावा किसी और के बारे में नहीं सोचता। चांद गोल है, उसकी बॉल भी गोल है, तो उसकी बॉल ही चांद है, इस तरीके के टेढ़े मेढ़े लॉजिक लगाने लगता है। अगर कोई सामान लेने कहीं भेजा है तो वह चला तो आसानी से जाएगा परंतु वापस आने में उसको प्रॉब्लम हो सकती है क्योंकि उसमें परिवर्तनशीलता का गुण (Irreversiblilty of thoughts) नहीं आता। वह 5+4= 9 समझता है परंतु 5+2+2 = 9 नहीं समझ पाता।
एक बार में केवल एक ही चीज पर पर फोकस कर पाता है परंतु चीजों को तोड़कर, खोलकर पता करना चाहता है की कोई चीज कैसे बनी है। इसी कारण जीन प्याजे ने इन्हें नन्हे वैज्ञानिक कहा। ऐसा आपने भी कभी ना कभी जरूर किया होगा। जैसे कांच के पेपर वेट को सभी तोड़कर देखते हैं कि आखिर उनके अंदर है क्या!! या पेन को खोल कर देखता कि इसके अंदर आखिर है क्या!!
तो यह सब बच्चे अपने वर्ल्ड को explore करने के लिए करते है। उनका इरादा चीजों को तोड़ने का नहीं होता बल्कि वह तो जानना चाहते हैं कि चीजें बनी कैसे हैं, इसी कारण ने उन्हें लिटिल साइंटिस्ट कहा जाता है।
3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था – Concrete Operational Stage, REVERSIBILITY IN THOUGHTS
यह लगभग 7 से 11 वर्ष तक की अवस्था होती है. इस अवस्था को सामान्यता उत्तर बाल्यावस्था (Later Childhood) या गैंग उम्र( Gang Age) भी कहा जाता है.इस उम्र में बच्चे अपने समूह के साथ रहना अधिक पसंद करते हैं। इस अवस्था में बच्चे अपने पर्यावरण के साथ अनुकूलन( Adaptation) करने के लिए कई तरीके के नियमों को सीख लेते हैं. भाषा का भी पूर्ण विकास हो जाता है।
इस अवस्था का सबसे प्रमुख गुण होता है कि बच्चे के विचारों में पलटने (Reversibility) का गुण आने लगता है जो की इससे पहले वाली यानी पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre Operational Stage) में नहीं आ पाता । अब बच्चा मूर्त चीजें (जो उसके सामने हैं )उन्हें लेकर लॉजिक लगा लेता है और कई तरीके के रिलेशंस को समझने लगता है। अब उसका चिंतन और अधिक क्रमबद्ध और तर्कसंगत क्रमबद्ध और तर्कसंगत होना प्रारंभ हो जाता है. इसके साथ ही अब अब वह संरक्षण( Conservation) ,पहचानना (Differentiation) वर्गीकरण( Classification) , क्रमानुसार जमाना (Seriation) आदि भी सीख जाता है। यानी अब बच्चा समझने लगता है की जितना जूस एक बड़े ग्लास में आता है उतना ही जूस एक छोटे कप में भी आ सकता है। यानी कि अब उसको समझ में आ जाता है की क्वांटिटी तो SAME ही है चाहे किसी भी बर्तन रख लें। यानी कि अब इस अवस्था में बच्चे को बेवकूफ बनाकर ज्यादा juice भी नहीं पिलाया जा सकता।
4.औपचारिक या अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था – Formal – Operational Stage, ABSTRACT THINKING
जीन पियाजे (A Swiss psychologist) के अनुसार यह बाल विकास की सबसे आखरी अवस्था है, जिसे सामान्यतः किशोरावस्था भी कहा जाता है। जिसकी उम्र 11 साल और उससे ऊपर होती है। अलग-अलग साइकोलॉजिस्ट के अनुसार यह उम्र अलग-अलग भी होती है। कोई इसे 13 वर्ष से मानता है तो कोई 15 तक भी मानता है। यही वह उम्र है जब बच्चों की लाइफ का गोल सेट करना चाहिए। जबकि ज्यादातर लोग पूत के पांव पालने में ही देखने की कोशिश करते हैं और इस उम्र में बच्चों पर लगाम कसने की कोशिश करते रहते हैं।
Stanley Hall के अनुसार “यह संघर्ष एवं तूफान की अवस्था है”। इस अवस्था में बच्चे अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं। ख्याली पुलाव पकाना, दिन में तारे देखना जैसी कहावत इस अवस्था में चरितार्थ होती दिखती है। यदि इस अवस्था में सही दशा और दिशा मिल जाए तो बच्चे किसी भी क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं परंतु यदि सही गाइडेंस नहीं मिल पाता है तो नशे की लत,चोरी,अन्य अपराध करने जैसी घटनाएं करने में बच्चे लिप्त हो जाते हैं।
बौद्धिक विकास की दृष्टि से भी यह अवस्था बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस अवस्था में बच्चों में अमूर्त चिंतन (एब्स्ट्रेक्ट थिंकिंग) अर्थात जो चीज आँखो के सामने नहीं है, उस पर भी सोचने की क्षमता का विकास हो जाता है। इस अवस्था में बच्चे मे हाइपोथेटिको डिडक्टिव रीजन परिकल्पनात्मक तर्कशक्ति ( Hypothetico deductive Reasoning ) का भी विकास होने लगता है और बच्चा बड़े से बड़े काम भी कर जाता है। मुश्किल चीजों को समझने लगता है। टीनेजर्स को भी लगता है कि वो सारी दुनिया का आकर्षण केंद्र हैं ।
H. E. Johns के अनुसार किशोरावस्था को शैशवावस्था की पुनरावृत्ति कहा जाता है। जिस प्रकार से शिशु चंचल स्वभाव के होते हैं और अपने आप को ही दुनिया का केंद्र मानते हैं। उसी प्रकार से किशोर भी चंचल स्वभाव के होते हैं, उन्हें भी ऐसा लगता है कि वही सारी दुनिया का आकर्षण केंद्र है।
किशोरावस्था को Age of problems भी कहते हैं। इसी कारण किशोरावस्था को समस्याओं की आयु (Age of problems), सपनों की आयु (Age of dreams) भी कहा जाता है। जिसमें विभिन्न प्रकार की समस्याएं जैसे -शिक्षा, स्वास्थ्य, नैतिक, मानसिक एवं सामाजिक समायोजन, सेक्सुअल प्रॉब्लम्स आदि समस्याएं आती है। इस उम्र में असफलता डिप्रेशन लाती है। यदि वे अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाते हैं तो उनमें हीन भावना भी उत्पन्न हो सकती है और यदि सही दशा व दिशा मिल जाती है तो बालक शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकसित होकर एक परिपक्व प्रौढ़ (Mature Adult) में विकसित होता है। इस टॉपिक से संबंधित वस्तुनिष्ठ प्रश्न हम अगले आर्टिकल में सॉल्व करेंगे
टॉपिक का सार – GIST OF THE TOPIC
अपने आसपास के बच्चों को उम्र के हिसाब से ,उनके नाम के हिसाब से इन अवस्थाओं में फिट करके उनके बारे में जानने की कोशिश करें कि किस उम्र में बच्चे की क्या विशेषता होती है और किस उम्र में उसकी सबसे बड़ी समस्या क्या होती है। इसको जानने के बाद ही आप एक अच्छे शिक्षक बन पाएंगे क्योंकि जब तक आप समस्या को नहीं पहचान पाएंगे तब तक उसको सॉल्व करने के लिए काम कैसे करेंगे। जैसे कोई डॉक्टर जब तक किसी बीमारी के बारे में नहीं जानता उसका इलाज नहीं कर पता ठीक इसी तरह से शिक्षक भी जब तक समस्या और विशेषताओं का पता नहीं नहीं लगा लेगा तब तक सही ढंग से नहीं पढ़ पाएगा। ✒ श्रीमती शैली शर्मा (MPTET Varg1(BIOLOGY),2(SCIENCE),3 & CTET PAPER 1,2(SCIENCE)-QUALIFIED
अस्वीकरण: सभी व्याख्यान उम्मीदवारों को सुविधा के लिए सरल शब्दों में सहायता के लिए प्रस्तुत किए गए हैं। किसी भी प्रकार का दावा नहीं करते एवं अनुशंसा करते हैं कि आधिकारिक अध्ययन सामग्री से मिलान अवश्य करें।
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