MPTET VARG 3, CTET PAPER 1 CDP NOTES-11 IN HINDI


बाल विकास की अवधारणा और इसका अधिगम से संबंध (CONCEPT OF CHILD DEVELOPMENT AND ITS RELATION WITH LEARNING)। परंतु बाल विकास की अवधारणा को समझने से पहले वृद्धि, परिपक्वता, विकास, अधिगम को समझना आवश्यक है। बाल विकास की अवधारणा को शुरू करने के लिए यह सभी नींव की तरह से काम करेंगे। यदि आप नियमित नहीं है तो कृपया इस टॉपिक को पढ़ने से पहले इसी आर्टिकल में दी गई लिंक पर क्लिक करके पुराने टॉपिक को अवश्य पढ़े, जिससे आप बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र को समझने के लिए अपनी समझ को बेहतर बना पाएंगे। इस लिंक (CLICK HERE) पर क्लिक करते ही आपको 10 नोट्स एक साथ मिल जाएंगे जहां से आप बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र से संबंधित PREVIOUS TOPICS को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

MPTET VARG 3, CTET PAPER 1 CDP NOTES-11 IN HINDI TOPIC -बाल विकास के सिद्धांत – Principles of child development

किसी भी कॉम्पिटेटिव एक्जाम को क्लियर करने के लिए बहुत जरूरी है कि आप हर कहीं से हर कुछ ना पढ़ें बल्कि आप एक STRUCTURED WAY में पढ़ाई करें,तभी आप एग्जाम को क्वालीफाई कर पाएंगे क्योंकि “विजेता अलग-अलग काम नहीं करते बल्कि, वे काम को अलग ढंग से करते हैं” “WINNERS DON’T DO DIFFERENT THINGS ,THEY DO THINGS DIFFERENTLY”

MP TET VARG-3 Topic- बाल विकास के सिद्धांत- Principles of Child Development

बाल विकास का सिद्धांत किसे कहते हैं, WHAT IS CALLED THE PRINCIPLE OF CHILD DEVELOPMENT  

चूँकि  विकास एक बहुत ही जटिल, सतत और व्यापक प्रक्रिया है। विकास कई प्रकार का हो सकता है जैसे- शारीरिक, मानसिक, सामाजिक,संज्ञानात्मक, भाषाई चारित्रिक आदि। परंतु किसी बालक के विकास की प्रक्रिया कुछ सिद्धांतों पर आधारित होती है, इन्हीं को बाल विकास के सिद्धांत कहा जाता है।

शिक्षण- अधिगम प्रक्रिया ( टीचिंग लर्निंग प्रोसेस) को प्रभावी बनाने के लिए एक शिक्षक को इनका ज्ञान होना अनिवार्य है और जिस आयु वर्ग के बालक बालिकाओं को शिक्षक को पढ़ाना है, उसे उस आयु वर्ग के सामान्य बच्चों के विकास के स्तर का पता जरूर होना चाहिए। तभी वह उनकी समस्याओं का निराकरण कर सकता है।

बाल विकास के सिद्धांत- Principles of Child Development

बाल विकास के सिद्धांत में हम सभी बिंदुओं पर चर्चा करेंगे। निरंतरता का सिद्धांत, विकास क्रम की एकरूपता और वैयक्तिक अंतर का सिद्धांत, सामान्य से विशिष्टता का सिद्धांत, एकीकरण का सिद्धांत, दिशा का सिद्धांत आदि। यहां आपको समझ में आएगा कि बालक के विकास के सिद्धांत में क्या-क्या प्रमुख होता है।

निरंतरता का सिद्धांत- Principle of Continuity

जैसा कि हम जानते हैं कि हैं कि विकास एक सतत प्रक्रिया है जो कि मां के गर्भ (प्रसवपूर्व अवस्था) में ही प्रारंभ हो जाती है और मृत्यु पर्यंत तक चलती रहती है या कहें कि जो परिवर्तनशील है, जो कभी रुकता नहीं है वही निरंतर है।

विकास क्रम की एकरूपता- Uniformity of Pattern

इस सिद्धांत के अनुसार विकास क्रम एक जाति (Species) के सभी जीवो में एक जैसा ही होता है, चाहे वह किसी भी देश वातावरण में रहे। अगर परिस्थिति सामान्य है तो विकास का क्रम भी सामान्य ही रहेगा। उदाहरण के तौर पर एक बच्चा पहले पेट के बल बल रेंगगा, फिर बैठना सीखेगा। घुटनों के बल चलना सीखेगा, फिर अपने पैरों पर चलना और फिर दौड़ना सीखेगा।

ऐसा कभी नहीं होगा कि पहले बच्चा दौड़ जाए और बाद में बैठना सीखे। यानी गाँव का हो या चाहे शहर का उसका विकास का क्रम एक रुप ही रहेगा। ऐसा कभी नहीं होगा कि गांव का बच्चा धीरे-धीरे विकास करे और शहर का बच्चा तेजी से विकास कर जाए या गांव का बच्चा जल्दी विकास करे और शहर का धीरे, दोनों के विकास के क्रम में एकरूपता रहेगी।

 

वैयक्तिक अंतर का सिद्धांत- Principle of Individual Differences

विकास क्रम में एकरूपता तो है पर वैयक्तिकका अंतर भी पाया जाता है क्योंकि विकास की गति हर व्यक्ति में अलग अलग होती है। उदाहरण के तौर पर सभी के शरीर में सिर, हाथ, पेट, पैर आदि होते हैं परंतु फिर भी हर एक की बनावट या फिजिक अलग होती है, यही वैयक्तिक अंतर है। जो हर व्यक्ति की अपनी अलग पहचान (Identity) बनाता है। Fingerprint technology और face recognition Technology इसी वैयक्तिक अंतर पर आधारित है। बाल विकास के अन्य सिद्धांत समझने के लिए हम अगले आर्टिकल में जाएंगे।

सामान्य से विशिष्टता का सिद्धांत- Principle  from general to specific

इसका अर्थ है कि कोई भी बच्चा, बाल विकास की प्रक्रिया के दौरान पहले सामान्य क्रिया को करने की कोशिश करेगा और उसके बाद ही वह किसी विशेष क्रिया को कर पाएगा। जैसे- जब कोई बच्चा बोलना शुरू करता है तो वह पहले साधारण ध्वनियाँ जैसे मा- मा, पा- पा , टा- टा , दा- दा  जैसी सरल ध्वनियाँ निकालेगा और उसके बाद में वह इन्हें मिलाकर बोलने लगेगा और शब्द बनाने का कोशिश करेगा और धीरे- धीरे शब्द से वाक्य बनाना सीख जाएगा।

और भी कई उदाहरण जैसे – हम अपने आसपास देखते हैं की कोई बच्चा पहले पेट के बल  रेंगता (Creep) है, फिर घुटनों के बल (Crawl) फिर, पैरों के बल खड़े होकर चलना सीख जाता है। यह भी सामान्य से विशिष्ट की ओर सिद्धांत को ही दर्शाता है। यह सामान्य से विशिष्ट का सिद्धांत हैं यानी Development proceeds from general to specific.

एकीकरण का सिद्धांत- Principle of Integration

जैसा कि जनरल से स्पेसिफिक के सिद्धांत में हमने देखा कि एक बच्चे ने ध्वनियों के माध्यम से शब्द और फिर शब्द से वाक्य को बनाना सीख लिया और फिर जरूरत पड़ने पर वह उसे बोल भी देता है, वही एकीकरण है। इसके अलावा बच्चे बहुत सी दैनिक गतिविधियों जैसे- खेलना, दौड़ना, साइकिल चलाना, तैरना इन सब से भी एकीकरण करना सीख जाते हैं। जैसे उनके सामने बहुत से shapes के खिलौने रख दिए जाएं, जिनको अलग-अलग ब्लॉक्स में फिट करना है, तो वह पहले आकृतियों को पहचानेंगे और फिर उनको फिट करने की कोशिश करेंगे और कोई आकृति बन जाएगी तो यह भी एकीकरण का ही सिद्धांत है। शार्ट में याद रखना हो तो पज़ल गेम एकीकरण का सिद्धांत है।

दिशा का सिद्धांत- Principle of Direction

बाल विकास के सिद्धांत मुख्य रूप से 2 दिशाओं को फॉलो करते हैं –

A)सिरोदपादोन्मुखी विकास (Cephalocaudal Development)

यह तो हमने अपने आसपास देखा ही है कि कोई भी बच्चा जन्म के बाद सबसे पहले अपनी गर्दन को साधना सीखता है। जब तक बच्चा गर्दन को साधना नहीं सीखता, तब तक हम बच्चे को उसकी गर्दन को सहारा देकर गोद में उठाते हैं और जब वह गर्दन साधना सीख जाता है तो हम उसको आसानी से उठा पाते हैं। गर्दन साधना सीखने के बाद बच्चा अपने अन्य अंगों पेट, हाथ, पैर आदि पर नियंत्रण करना भी सीख जाता है। तो बस यह तो हम सबने देखा ही है और इसका नाम है, सिरोदपादोन्मुखी विकास (Cephalocaudal Development)

सिरोदपादोन्मुखी शब्द का अर्थ है-  सिर से पैर की तरफ विकास होना। इसी तरह इंग्लिश में Cephalo का अर्थ है- Head (सिर) Caudal का अर्थ है- Leg / Tail (पैर/पूँछ)। अगर आपको इस एक शब्द का मतलब पता चल गया तो आगे कुछ भी याद करने की जरूरत नहीं है। इस एक शब्द से ही आपको पता चल जाएगा कि बालक का विकास सिर से पैर की ओर होता है और इसे ही लंबवत या Longitudinal direction भी कहा जाता है।

B)समीपस्थ दूरस्थ विकास (Proximodistal Development)

जब एक कोशिका से भ्रूण का विकास होना शुरू होता है तो सबसे पहले उसके शरीर के मध्य भाग में स्थित अंग जैसे- रीड की हड्डी, ब्रेन, हार्ट आदि बनते हैं जबकि बाहरी अंग जैसे-  हाथ, पैर बाद में बनते हैं। इसी प्रकार बच्चे के जन्म के बाद भी सबसे पहले वह शरीर के मध्य भागो जैसे-  गर्दन पर नियंत्रण करना सीखता है। जबकि बाहरी अंगों जैसे-  हाथ, पैर पर नियंत्रण करना बाद में सीखता है। इसी को समीपस्थ दूरस्थ विकास, केंद्र से परिधि की ओर विकास, प्रॉक्सिमोडिस्टल डेवलपमेंट, सेंट्रल टू पेरिफेरी डेवलपमेंट कहा जाता है। इन दोनों दिशाओं के अनुसार ही बालक का विकास होता है। अगले आर्टिकल में हम विकास के सिद्धांतों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर जानेंगे।

टॉपिक का सार-GIST OF THE TOPIC

अपने आसपास क्रमशः छोटे बच्चों(0 MONTH) से लेकर बड़े बच्चों(6 से 12 वर्ष) को ध्यान पूर्वक देखने की कोशिश करें कि और जानने की कोशिश करें कि उन्होंने कैसे-कैसे विकास किया होगा और फिर इन बाल विकास के सिद्धांतों को पढ़कर आपको समझ आ जाएगा कि इन बच्चों ने भी विकास के सिद्धांतों को ही फॉलो किया है। चाहे तो आप अपने आसपास के बच्चों के नाम के हिसाब से भी इन बाल विकास के सिद्धांतों में फिट कर सकते हैं क्योंकि “किसी के नाम” से याद रखना आसान होता है और डेली लाइफ से सीखना सबसे ज्यादा आसान होता है।

✒ श्रीमती शैली शर्मा (MPTET Varg1(BIOLOGY),2(SCIENCE),3 & CTET PAPER 1,2(SCIENCE)-QUALIFIED

अस्वीकरण: सभी व्याख्यान उम्मीदवारों को सुविधा के लिए सरल शब्दों में सहायता के लिए प्रस्तुत किए गए हैं। किसी भी प्रकार का दावा नहीं करते एवं अनुशंसा करते हैं कि आधिकारिक अध्ययन सामग्री से मिलान अवश्य करें।

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