खदान और वन माफियाओं से छलनी हुआ रातापानी अभयारण्य, जिम्मेदारों को अब आई याद, मुख्य सचिव ने अफसरों को दिए ये निर्देश   


शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मध्य प्रदेश में रातापानी अभ्यारण को टाइगर रिजर्व घोषित करने की प्रक्रिया 16 सालों से अटकी हुई है। जबकि राष्‍ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण इसे मंजूरी दे चुका है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव भी अधिकारियों को फटकार लगा चुके हैं। इसके बावजूद रातापानी अभ्यारण, टाइगर नहीं बल्कि खदान और वन माफियाओं का अड्डा बन गया है। 

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प्रदेश के नए मुख्य सचिव अनुराग जैन ने इस पर संज्ञान लेते हुए वन विभाग की समीक्षा बैठक कर अधिकारियों को एक माह में टाइगर रिजर्व बनाने की अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए है। मुख्य सचिव ने अधिकारियों से कहा कि भोपाल से सटे रातापानी और सिंघौरी अभयारण्य को मिलाकर एमपी का आठवां टाइगर रिजर्व बनाने में आ रही तमाम अड़चनों को जल्द से जल्द दूर करने के निर्देश दिए है।अनुराग जैन ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि जब केंद्र सरकार से अनुमति मिल चुकी है तो फिर राज्य सरकार के स्तर पर कहां और क्यों लेट लतीफी हो रही है।   

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बता दें कि टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव वर्ष 2008 से लंबित है, केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव भी रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार से आग्रह कर चुके है। रातापानी को टाइगर रिजर्व रूप में अधिसूचित करने एनटीसीए भी अपनी मंजूरी दे चुका है। रातापानी अभयारण्य क्षेत्र में कई नेताओं एवं अधिकारियों की जमीनें, रिसोर्ट एवं क्रेशर है, जिसके चलते इसे लेकर मामला फंसा हुआ नजर आ रहा है। रातापानी में वर्तमान में तीन हजार 123 वन्यप्राणी है, इनमें 56 बाघ, 70 तेंदुए, आठ भेड़िया, 321 चिंकारा, 1433 नीलगाय, 568 सांभर और 667 चीतल शामिल है। 

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