DPI BHOPAL को हाई कोर्ट का लास्ट चांस, मध्य प्रदेश शिक्षक भर्ती में आरक्षण विवाद
मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग एवं जनजातीय कार्य विभाग के लिए आयोजित संयुक्त शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में 2500 से ज्यादा शिक्षकों को उनकी चॉइस फिलिंग के विरुद्ध ट्राइबल डिपार्टमेंट में नियुक्ति के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने लोक शिक्षण संचालनालय भोपाल को लास्ट चांस दिया है। 21 अक्टूबर तक चॉइस फिलिंग कराएं, अन्यथा कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहें।
मध्य प्रदेश शिक्षक भर्ती चॉइस फिलिंग विवाद
स्कूल शिक्षा विभाग ने सयुंक्त काउंसलिंग करके आरक्षित वर्ग के ढाई हजार से अधिक शिक्षकों को उनकी चॉइस के विरुद्ध ट्रायबल विभाग द्वारा संचालित स्कूलों में उनके गृह जिला से 300 से 800 KM दूर किया पद पदस्थापित किया गया है। स्कूल शिक्षा विभाग के उक्त कृत्य के विरुद्ध हाईकोर्ट में पूर्व में कई याचिकाएं दाखिल की गईं थी। जिनको हाईकोर्ट ने डिस्पोज ऑफ करके कमिश्नर लोक शिक्षण विभाग को आदेशित किया गया था कि आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंद्रा शाहनी, रीतेश आर. शाह, अलोक कुमार पंडित, त्रिपुरारी शर्मा एवं सौरभ यादव के मामलो में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी मार्गदर्शी के अनुसार याचिकाकर्ताओ के प्रकरण का परिक्षण करके उनकी पसंद (चॉइस) के अनुसार पदस्थापित किया जाए।
आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय ने महाधिवक्ता कार्यालय के अभिमत के आधार पर उक्त समस्त अभ्यार्थियो के प्रकरण निरस्त कर दिए गए तथा डीपीआई कमिश्नर ने रिजेक्शन आदेश में नियम पुस्तिका की कण्डिका क्रमांक 15.6 का लेख करके याचिकाकर्ताओ को सूचित किया गया कि किसी भी अभ्यर्थियों को चॉइस के आधार पर पदस्थापना का दावा मान्य नहीं होगा।
याचिकाकर्ताओ के वकील की दलील
DPI के उक्त समस्त आदेशों की संवैधानिकता को हाईकोर्ट की डिवीजन बैच में चुनौती दीं गईं। उक्त समस्त याचिकाओं की सुनवाई जस्टिस संजीव सचदेवा तथा जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ द्वारा की गईं। समस्त याचिकाकर्ताओ की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि, संविधान के अनुच्छेद में समानता का अधिकार प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है, लेकिन इन प्रकरणों में स्कूल शिक्षा विभाग, एवं कमिश्नर DPI द्वारा याचिका कर्ताओ से कम अंक बाले हजारों अभ्यर्थियों को स्कूल शिक्षा विभाग में उनकी चॉइस के अनुसार उनके गृह जिलो में उनके ही वर्ग में पदस्थापित किया गया, जबकी याचिकाकर्ताओ ने एक भी स्कूल ट्रायबल विभाग का चॉइस नहीं किया है लेकिन कमिश्नर DPI द्वारा नियम विरुद्ध तरीके से उनकी आरक्षित केटेगरी को अनारक्षित वर्ग में प्रतिवर्तित करके उनके गृह जिलों से 300 से 800 किलोमीटर दूर दराज रिमोट एरिया में ट्रायबल विभाग द्वारा संचालित स्कूलों में पोस्टिंग/ पदस्थापना दीं गईं है।
पदस्थापना के समय कमिश्नर ने न तों उनकी चॉइस को वरीयता दीं औऱ न ही आरक्षण अधिनियम के प्रावधानों को औऱ सबसे मुख्य बात यह है की एक बार हाईकोर्ट कमिश्नर को की गईं भूल को सुधारने का मौका भी दे चुकी है फिर भी कमिश्नर ने सुधार नहीं किया तथा हाल ही में स्कूल शिक्षा विभाग ने जिला वार रिक्त पदों का रोस्टर भी जारी कर दिया गया है।
लोक शिक्षण संचालनालय की दलील
शासन की ओर से जबाब दाखिल किया जा चुका है, शासन का पक्ष रखते हुए एडिशनल एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को बताया की याचिकाकर्ताओ द्वारा उन अभ्यर्थियों को पक्षकार नहीं बनाया गया है, जिनकी नियुक्तियां याचिकाकर्ताओ द्वारा चॉइस किए स्कूलों में की गईं है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला
शासन की ओर से पक्ष रख रहे एडिशनल एडवोकेट जनरल को कोर्ट ने जमकर लताड़ लगाते हुए कहा कि, लगता है कि शायद कानून की जानकारी न आपको है औऱ न ही आपके विभाग प्रमुख को। जब कानून की वैधानिकता या पालिसी मेटर की वैधानिकता को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दीं जाती है तब संभावित प्रभावित व्यक्तियों को पक्षकार बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। इन समस्त प्रकरणो में आपके विभाग ने आरक्षण नीति तथा सुप्रीम कोर्ट के रेखांकित सिद्धांतो के विरुद्ध याचिकाकर्ताओ को आरक्षित वर्ग से अनारक्षित में कन्वर्ट करके डिसएडवांटेज पोजीशन में नियुक्तियां दीं गईं है, जो इस न्यायालय के हस्तक्षेप के योग्य है, इसलिए आपको अंतिम मौका दिया जाता है कि 21 अक्टूबर के पूर्व उक्त समस्त याचिकाकर्ताओं को उनकी चॉइस के आधार पर स्कूल शिक्षा विभाग में रिक्त पदों के विरुद्ध नियुक्ति जारी कर कोर्ट को सूचित करें।
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