BNS 233 – उस साक्ष्य को काम में लाना जिसका मिथ्या होना ज्ञात हो, कब अपराध होता है कब नहीं
अगर कोई व्यक्ति झुठे कूटरचित दस्तावेज को जानबूझकर न्यायालय की कार्यवाही में लाता है और वह जनता है कि है दस्तावेज जाली, कूट रचित या बनावटी है तब उसके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी, जानिए :
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 233 की परिभाषा
अगर कोई व्यक्ति ऐसे मिथ्या साक्ष्य को काम में लाता है जो झूठे है या कूटरचित जाली दस्तावेज है तब वह व्यक्ति BNS की धारा 233 के अंतर्गत दोषी होगा।
इस अपराध के आवश्यक तत्व:-
1. कोई व्यक्ति जानते हुए कि साक्ष्य मिथ्या है, उसे न्यायिक कार्यवाही में प्रस्तुत करता है।
2. मिथ्या साक्ष्य का उद्देश्य किसी व्यक्ति को अपराधी साबित करना या किसी के अधिकारों का उल्लंघन करना होता है।
3. मिथ्या साक्ष्य के कारण किसी व्यक्ति को सजा या हानि पहुंचती है।
उदाहरण केलिए:
1. राम ने अदालत में एक मिथ्या दस्तावेज़ प्रस्तुत किया जिससे श्याम को अपराधी साबित किया गया।
2. विक्रम ने अदालत में एक मिथ्या गवाही दी जिससे रोहन को सजा हुई।
3. सूरज ने अदालत में एक मिथ्या शपथ पत्र प्रस्तुत किया जिससे राहुल के अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
अपराध नहीं होगा:-
1. यदि व्यक्ति को मिथ्या साक्ष्य की जानकारी नहीं है।
2. यदि मिथ्या साक्ष्य का उद्देश्य सच्चाई को उजागर करना होता है।
3. यदि मिथ्या साक्ष्य के कारण किसी को हानि नहीं पहुंचती।
THE BHARATIYA NYAYA SANHITA, 2023,SECTION 233 PROVISION OF PUNISHMENT
इस धारा के अपराध असंज्ञेय एवं अजमानतीय एवं जमानतीय दोनों प्रकार के होते हैं अर्थात पुलिस थाने में इस अपराध की डायरेक्ट एफआईआर दर्ज नहीं होगी, लेकिन पुलिस NCR लिख सकती है एवं इस अपराध के लिए न्यायालय में परिवाद भी लगाया जा सकता है। इस अपराध की सुनवाई उसी कोर्ट द्वारा होगी जहां आरोपों का विचारण चल रहा है एवं यह अपराध समझौता योग्य नहीं है अर्थात् राजीनामा नहीं किया जा सकता है। इस अपराध में अपराधी को उसी दण्ड से दण्डित किया जाएगा जिस अपराध से बचने के लिए झूठे साक्ष्य दस्तावेज पेश किए थे।