‘पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार की आ रही बू’: स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी को ग्वालियर HC ने लगाई कड़ी फटकार, राज्य सरकार को दिए ये निर्देश


कर्ण मिश्रा। ग्वालियर हाईकोर्ट ने एक बस परमिट से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी की मनमानी पर गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि अस्थाई परमिट देना नियम बन गया है। इससे पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार की बू आ रही है। ये परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव और MP के मुख्य सचिव की जिम्मेदारी है कि वह सिस्टम में फैली मनमानी और विसंगतियों को देखें, जो भ्रष्टाचार को पोषित कर रही है। इसी के साथ बस का परमिट भी कोर्ट ने निरस्त किया है।

स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी को HC की कड़ी फटकार 

दरअसल, बस ऑपरेटरों को अस्थाई परमिट देने में मनमाना रवैया अपनाने पर हाईकोर्ट ने स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी को कड़ी फटकार लगाई है। HC ने सुनवाई के दौरान कहा कि मोटरयान अधिनियम के सेक्शन 87 में स्पष्ट लिखा गया है कि आरटीओ और एसटीए ज्यादा से ज्यादा 4 महीने के लिए अस्थाई परमिट दे सकते हैं। यह मेकैनिज्म इसलिए बनाया गया, ताकि त्योहार और मेले में यात्रियों की भीड़ को देखते हुए उन रूटों पर बसों का परिवहन किया जा सके। लेकिन हाल में लगातार देखने मिल रहा है कि अस्थाई परमिट नियम बन गया है और इस पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार की बदबू भी आ रही है। राज्य सरकार तत्काल मामले को देखें। 

मध्य प्रदेश सड़क परिवहन निगम भंग हो चुका है: कोर्ट 

कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए यह भी कहा है कि मध्य प्रदेश सड़क परिवहन निगम भंग हो चुका है। ऐसे में यात्री या तो अनुबंधित या फिर प्राइवेट ट्रांसपोर्टर पर निर्भर हैं। जबकि मध्य प्रदेश एक बड़े क्षेत्र वाला राज्य है,जहां कई दुर्गम क्षेत्र भी है। नियमित ट्रांसपोर्ट सेवा के अभाव में बुजुर्ग महिला और अन्य लोग काफी परेशानी झेलते हैं,ऐसे में अनिवार्य रूप से नियमित स्थाई परमिट प्रदान किए जाएं। ताकि आमजन एक जगह से दूसरी स्थान पर आसानी से जा सके।

हाईकोर्ट में याचिका हुई थी दायर  

गौरतलब है कि चंद्रदीप कुमार वैश्य नाम के व्यक्ति ने STA के 17 जुलाई 2024 को दिए गए निर्णय को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें बताया गया है कि मृगेंद्र मिश्रा नाम के बस ऑपरेटर को छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से मध्य प्रदेश के बैठन तक बस चलाने के लिए अस्थाई परमिट दिया गया।

अस्थाई परमिट को किया निरस्त 

अधिवक्ता मान सिंह जादौन ने बताया कि जिस समय आवेदन दिया, उस दौरान मृगेंद्र मिश्रा ने बकाया राशि जमा नहीं की थी। इसके बाद भी उसे 175 किलोमीटर लंबे रूट पर अस्थाई परमिट दिया गया। हाईकोर्ट ने उनके तर्क को स्वीकार करते हुए STA की ओर से जारी अस्थाई परमिट को निरस्त कर दिया।

STA सचिव को दी सचेत रहने की हिदायत 

कोर्ट ने STA के सचिव को भविष्य में इस तरह के मामलों में सचेत रहने की हिदायत दी है। साथ ही आदेश की कॉपी मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव और प्रबंधन विभाग के प्रमुख सचिव को भेजने के लिए कहा है। ताकि आदेश का पालन किया जा सके। मामले की अगली सुनवाई अब नवंबर महीने में होगी। 

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