देश के इस हिस्से में स्वतंत्रता के बाद भी नहीं मिली थी ‘आजादी’; दो साल तक नहीं फहराया गया था तिरंगा…संघर्ष, आंदोलन और शहीदी की पढ़िए पूरी कहानी
भारत अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस (Independence Day Special) मना रहा है। स्वतंत्रता दिवस हमें उन दिनों की याद दिलाता है जब भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी (Freedom) मिली थी। जिसमें भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद (Dr Rajendra Prasad) ने 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणराज्य के जन्म के अवसर पर पहला राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। जिसे भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश को तो आजादी मिल गई थी, लेकिन एक ऐसी राजधानी भी थी जहां तिरंगा नहीं लहराया गया था। जिसने कोशिश भी की तो उसे गोली मार, उसकी हत्या कर दी जाती थी। आज हम आपको उसी के बारे में बताएंगे।
आपको जानकर हैरानी होगी की मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पहला स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया गया था। यहां इस दिन तिरंगा नहीं लहराया गया था। दरअसल, देश में ऐसे कई क्षेत्र थे जो 15 अगस्त 1947 को भारत का हिस्सा नहीं बन पाए थे। आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको एक विशेष सीरीज के तहत देश की आजादी से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात बताने जा रहे है। की क्यों भोपाल में तिरंगा नहीं लहराया गया, क्यों भोपाल आजाद नहीं हुआ था? आखिर कब राजधानी में तिरंगा लहराया था। तो चलिए इतिहास के उन पन्नों में जहां बहुत कुछ मिलेगा जानने को।
भोपाल रियासत की कहानी
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की पहचान आज भी नवाबों के शहर के रूप में की जाती है। यहां सालों तक नवाबों का राज रहा है, जिनकी सल्तनत अंग्रेजों के इशारे पर चलती थी। इसके साथ हाय इस रियासत के नवाब इसे पाकिस्तान का हिस्सा भी बनाना चाहते थे। बतादें कि, भोपाल रियासत की स्थापना 1723-24 में औरंगजेब की सेना के योद्धा मोहम्मद खान ने सिहोर, आष्टा, खिलचीपुर और गिन्नौर को जीत हासिल की थी। सन 1728 में मोहम्मद खान की मौत हो गई। इसके बाद उसके बेटे यार मोहम्मद खान भोपाल पर रियासत के पहले नवाब बने।
भोपाल की संघर्ष भरी लड़ाई
15 अगस्त 1947 वो दिन जब भारत स्वतंत्रत हुआ था, उस समय भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खां ने भोपाल को स्वतंत्र रखने का फैसला लिया। लेकिन सन 1948 में भोपाल राज्य की भारत में विलय की मांग उठने लगी थी, जिसमें पत्रकार प्रेम श्रीवास्तव, भाई रतन कुमार, प्रो. अक्षय कुमार, सूरजमल जैन, बालकृष्ण गुप्त, मथुरा प्रसाद, मोहनी देवी, शांति देवी और बसंती देवी जैसे आदि लोग सम्मिलित थे। इस आंदोलन को गति देने के लिए भाई रतन कुमार और उनके सहयोगियों ने एक ‘नई राह’ नाम अखबार निकाला। इस आंदोलन का केंद्र जुमेराती स्थित रतन कुटी बनाया गया। जहां पर ‘नई राह’ अखबार का कार्यालय बनाया था।
इधर नवाब के आदेश पर इस कार्यालय को बंद कर दिया गया। इसके बाद होशंगाबाद से एडवोकेट बाबूलाल वर्मा के घर से भूमिगत होकर इस आंदोलन को चलाया गया। जब मामले में जनता का दबाव बढ़ने लगा तो सरदार पटेल ने इसमें हस्तक्षेप किया, जिसके कारण भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खां को विवश होकर विलय समझौते पर हस्ताक्षर करने ही पड़े। इस तरह से भोपाल 1 जून 1949 को भारत में सम्मिलित हो गया।
लेकिन अभी साघर्ष थमा नहीं था। जो ‘भारत माता की जय’ भोपाल नवाब उसे गोलियों से भून डालते थे। भारत भले ही 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था, लेकिन भोपाल के नागरिकों को आजादी नहीं मिली। 15 अगस्त 1947 से लेकर लगातार 01 जून 1949 तक भोपाल पर नवाब का शासन चला। यहां भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराना भी गुनाह माना जाता था।
इस दिन लहराया था तिरंगा
एक जबरदस्त संघर्ष के बाद आखिर वो दिन आया 01 जून 1949 को भोपाल में तिरंगा लहराया और आजादी का ऐलान किया गया। नवाब हमीदुल्ला खाॅं भोपाल को स्वतंत्र राज्य बनाना चाहते थे भोपाल रियासत के भारत गणराज्य में विलय में लगभग दो साल का समय लगा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भोपाल नवाब हमीदुल्ला खाॅं इसे स्वतंत्र रियासत के रूप में रखना चाहते थे। साथ ही हैदराबाद निजाम उन्हें पाकिस्तान में विलय के लिए प्रेरित भी कर रहे थे। जो कि भौगोलिक दृष्टि से असंभव था।
आजादी के इतने समय बाद भी भोपाल रियासत का विलय न होने से जनता में भारी आक्रोश था। जो विलीनीकरण आंदोलन में परिवर्तित हो गया, जिसने आगे जाकर एक उग्र रूप ले लिया। आजादी के लिए विलीनीकरण आन्दोलन चलाया गया, भोपाल रियासत के भारत संघ में विलय के लिए चल रहे विलीनीकरण आन्दोलन की रणनीति और गतिविधियों का मुख्य केन्द्र मध्य प्रदेश का रायसेन और सीहोर जिला था।
भोपाल की आजादी में 4 युवक हुए थे शहीद
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की आजादी के लिए बोरास में 4 युवक शहीद हुए थे। दरअसल, भोपाल रियासत के विलीनीकरण मेें रायसेन जिले के ग्राम बोरास में 4 युवा शहीद हुए थे। शहीद हुए युवकों की उम्र 30 साल से भी कम थी। इनकी उम्र को देखकर आप उस वक्त युवाओं में देशभक्ति के जज्बे का अनुमान लगा सकते है। शहीद होने वालों में धनसिंह आयु 25 वर्ष, मंगलसिंह 30 वर्ष, विशाल सिंह 25 वर्ष और एक 16 वर्षीय किशोर मा. छोटेलाल थे।