अचलेश्वर महादेव की आस्था भी अटूट: 300 साल प्राचीन मंदिर में महाशिवरात्रि पर उमड़ा भक्तों का सैलाब, यहां हैं स्वयंभू शिवलिंग, जानें इतिहास


कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। शिवभक्त आज महाशिवरात्रि के पर्व में सराबोर है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी 300 साल से ज्यादा प्राचीन भगवान अचलेश्वर महादेव के मंदिर में देर रात से ही भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। मंदिर में शहर और ग्रामीण इलाके के साथ साथ अन्य राज्यों से भी भक्त दर्शन कर लिए पहुंच रहे है। अचलेश्वर महादेव के बारे में कहा जाता है कि ये स्वयंम्भू शिवलिंग हैं, ये स्वयं प्रकट हुआ था, बाद में यहां छोटा सा मंदिर बना दिया गया था।

ग्वालियर पर कब्जा करने के बाद सिंधिया राजवंश ने 18वीं सदी में ग्वालियर को राजधानी बनाया। सिंधिया राजवंश ने राजकाज चलाने के लिए उस दौर में महाराजबाड़ा बनवाया। इसके साथ ही किले के नीचे जयविलास महल बनाया था। महाराजबाड़ा से जयविलास महल तक जाने वाले रास्ते में पेड़ के नीचे ये शिवजी का मंदिर था, सिंधिया राजवंश के राजाओं की सवारी इसी रास्ते से निकलती थी। रास्ते मे बने छोटे से मंदिर को तत्कालीन राजा ने हटाने के लिए कहा। जब राजा ने शिवलिंग को हटाने की कोशिश की तो ये शिवलिंग हिला तक नही, बाद इसे खोदने की कोशिश हुई लेकिन गहराई तक शिवलिंग निकलता चला गया।

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राजा महाराजा और अंग्रेज भी नहीं हिला पाए थे

आखिर में राजा ने हाथियों से जंजीरें बांधकर शिवलिंग को उखाडना चाहा, लेकिन हाथियों ने भी जोर लगा लगा कर जबाव दे दिया। जंजीरें टूट गई तो आखिर में थक हारकर सिंधिया के सेनापति भी महल लौट गए। उसी रात सिंधिया राजा को शिव जी ने सपना दिया। जिसमें शिवजी ने प्रकट होकर कहा कि मैं अचल हूं यहां से मुझे हटाने की कोशिश मत करो। दूसरे दिन राजा ने अपने खास लोगों को वाकया सुनाया। फिर अगले दिन राजा ने कारीगर बुलवाए और फिर रास्ते पर स्थित इस मंदिर को भव्य बनवाया। इस शिवलिंग को अचलनाथ के नाम से पूजना शुरू किया। इस तरह ये शिव मंदिर अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।

स्वयंभू शिवलिंग

अचलेश्वर महादेव के बारे में कहा जाता है कि ये स्वयंभू शिवलिंग हैं। करीब 750 साल पहले ये स्वयं प्रकट हुआ था। बाद में यहां छोटा सा मंदिर बना दिया गया था। ग्वालियर पर कब्जा करने के बाद सिंधिया राजवंश ने अठारवीं सदी में ग्वालियर को राजधानी बनाया। सिंधिया राजवंश ने राजकाज चलाने के लिए उस दौर में महाराजबाड़ा बनवाया। इसके साथ ही किले के नीचे जयविलास महल बनाया था। महाराजबाड़ा से जयविलास महल तक जाने वाले रास्ते में पेड़ के नीचे ये शिवजी का मंदिर था।

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मनोकामनाएं होती है पूरी

अचलेश्वर महादेव के अचल और अटल होने के चलते भक्तों की आस्था भी अटूट है, जो भक्त बाबा अचलनाथ के दरबार मे आस्था के साथ मन्नत मांगता है। अपनी आस्था और भक्ति पर अटल रहता है बाबा अचलनाथ उन भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। भक्त भी कहते हैं कि अचलनाथ को राजा महाराजा या अंग्रेज हिला नहीं पाए थे। कई भक्तों तो ऐसे हैं जो ग्वालियर से बाहर चले गए, लेकिन बाबा की भक्ति के चलते वापस अचलनाथ की नगरी में लौट आए। कहते है कि अगर भक्त अपनी भक्ति पर अटल है तो अचलनाथ भी उसकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं, यही वजह है कि दूर दूर से लोग अचलनाथ के दरबार मे आते हैं।

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